श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 – श्लोक 1 से 10 तक हिंदी अर्थ व व्याख्या | Sankhya Yog Bhagavad Gita
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 – श्लोक 1 से 10 तक हिंदी अर्थ व व्याख्या | Sankhya Yog Bhagavad Gita
Introductory Paragraph (परिचय):
भगवद्गीता के दूसरे अध्याय को "सांख्य योग" कहा गया है। इस अध्याय की शुरुआत होती है उस समय से, जब अर्जुन युद्ध भूमि में मोह, शोक और धर्म-संकट से भर जाता है। इस भाग में हम पढ़ेंगे श्लोक 1 से 10 तक का पाठ, जिसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को उसके कर्तव्य की याद दिलाने लगते हैं और उसे मानसिक रूप से तैयार करते हैं। हर श्लोक का मूल संस्कृत पाठ, हिंदी अनुवाद और भावार्थ (व्याख्या) भी साथ में दिया गया है।
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श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 2 (सांख्य योग)
श्लोक 1 से 10 – संस्कृत, हिंदी अनुवाद और व्याख्या
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श्लोक 1
सञ्जय उवाच:
तं तथा कृपयाविष्टम् अश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्तम् इदं वाक्यम् उवाच मधुसूदनः॥
हिंदी अनुवाद:
संजय ने कहा – करुणा से अभिभूत, अश्रुओं से भरी आँखों वाला और विषाद में डूबा हुआ अर्जुन से मधुसूदन (कृष्ण) ने यह वचन कहा।
भावार्थ:
भगवान श्रीकृष्ण अब अर्जुन को उसके मोह से बाहर निकालने के लिए संवाद शुरू करते हैं।
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श्लोक 2
श्रीभगवान उवाच:
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टम् अस्वर्ग्यम् अकीर्तिकरम् अर्जुन॥
हिंदी अनुवाद:
हे अर्जुन! यह तुझ पर यह मोह ऐसा कठिन समय आने पर कैसे छा गया है? यह न आर्यों के योग्य है, न स्वर्ग दिलाने वाला और न ही यशप्रद है।
भावार्थ:
कृष्ण अर्जुन को उसके कर्तव्य से विमुख करने वाले विचारों को अनुचित ठहराते हैं।
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श्लोक 3
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥
हिंदी अनुवाद:
हे पार्थ! तू कायरता को मत अपनाओ, यह तुझ पर शोभा नहीं देती। हृदय की इस दुर्बलता को त्यागकर खड़ा हो जा।
भावार्थ:
कृष्ण अर्जुन को उसकी वीरता का स्मरण कराते हैं और उसे जागृत करते हैं।
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श्लोक 4
अर्जुन उवाच:
कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन।
इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन॥
हिंदी अनुवाद:
अर्जुन ने कहा – हे मधुसूदन! मैं युद्ध में पितामह भीष्म और गुरु द्रोण पर बाण कैसे चला सकता हूँ? वे तो पूजनीय हैं।
भावार्थ:
अर्जुन धर्मसंकट में है – वह अपनों के विरुद्ध हथियार उठाने को अधर्म मान रहा है।
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श्लोक 5
गुरूनहत्वा हि महानुभावान्
श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके।
हत्वार्थकामांस्तु गुरुर्निहत्वा
भुंजीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान्॥
हिंदी अनुवाद:
इन महान गुरुओं को न मारकर भिक्षा मांगकर जीना उत्तम है, क्योंकि उन्हें मारकर जो भोग भोगेंगे, वे रक्तरंजित होंगे।
भावार्थ:
अर्जुन युद्ध को अधर्मपूर्ण मानते हुए भिक्षा में जीवन यापन को श्रेष्ठ मानता है।
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श्लोक 6
न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो
यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः।
यानेव हत्वा न जिजीविषामस्
तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः॥
हिंदी अनुवाद:
हम नहीं जानते कि हमारे लिए क्या अच्छा है – उन्हें जीतना या उनसे हारना, क्योंकि जिनको मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे ही हमारे समक्ष खड़े हैं।
भावार्थ:
अर्जुन के भीतर का असमंजस और गहरा हो जाता है।
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श्लोक 7
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्॥
हिंदी अनुवाद:
मैं कायरता से आच्छादित होकर, धर्म के विषय में भ्रमित होकर, आपको शिष्य भाव से शरण में आया हूँ – कृपया मुझे उपदेश दीजिए कि मेरे लिए क्या श्रेष्ठ है।
भावार्थ:
यहाँ से अर्जुन का अहंकार टूटता है और वह श्रीकृष्ण को अपना गुरु मानकर ज्ञान मांगता है।
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श्लोक 8
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्यात्
यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्।
अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं
राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्॥
हिंदी अनुवाद:
मैं ऐसा कोई उपाय नहीं देखता जो मेरे इस इंद्रियों को सुखा देने वाले शोक को दूर कर सके, भले ही मुझे राज्य, ऐश्वर्य या स्वर्ग भी क्यों न मिल जाए।
भावार्थ:
अर्जुन को ऐसा लगता है कि यह शोक सांसारिक सफलता से भी नहीं मिट सकता।
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श्लोक 9
सञ्जय उवाच:
एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप।
न योत्स्य इति गोविन्दम् उक्त्वा तूष्णीं बभूव ह॥
हिंदी अनुवाद:
संजय ने कहा – इस प्रकार अर्जुन ने हृषीकेश से कहा कि वह युद्ध नहीं करेगा, और फिर वह चुप हो गया।
भावार्थ:
अर्जुन अब पूरी तरह मौन हो गया है – उसका मन युद्ध से दूर हट चुका है।
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श्लोक 10
तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत।
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तम् इदं वचः॥
हिंदी अनुवाद:
हे भारत (धृतराष्ट्र)! तब श्रीकृष्ण ने दोनों सेनाओं के मध्य, विषाद में डूबे अर्जुन से मंद मुस्कान के साथ ये वचन कहे।
भावार्थ:
अब श्रीकृष्ण गीता का मूल उपदेश शुरू करने जा रहे हैं। यहीं से ज्ञान, कर्म और भक्ति का संगम आरंभ होता है।
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