श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1: श्लोक 26 से 40 तक (हिंदी अनुवाद व व्याख्या)
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1: श्लोक 26 से 40 तक (हिंदी अनुवाद व व्याख्या)
श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 1 (अर्जुनविषाद योग)
श्लोक 26 से 40 तक (हिंदी अनुवाद एवं व्याख्या)
इस भाग में अर्जुन के भीतर चल रहे मानसिक संघर्ष को दर्शाया गया है।
परिवारजनों को युद्धभूमि में देखकर वह दुविधा, मोह और करुणा से भर उठते हैं।
श्लोक 26 से 40 तक अर्जुन के भावनात्मक उतार-चढ़ाव को विस्तार से बताया गया है।
यह श्रृंखला हर श्लोक का हिंदी अनुवाद और सरल व्याख्या प्रस्तुत करती है।
---
श्लोक 26
तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थः पितृ़नथ पितामहान्।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातॄन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा॥
हिंदी अनुवाद:
वहाँ अर्जुन ने अपने सामने खड़े पिताओं, पितामहों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों और मित्रों को देखा।
व्याख्या:
अर्जुन जब युद्धभूमि में शत्रु-पक्ष की ओर देखते हैं, तो उन्हें अपने ही परिवार और संबंधी दिखते हैं, जो युद्ध में उनका विरोध कर रहे हैं।
---
श्लोक 27
श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान्॥
हिंदी अनुवाद:
अर्जुन ने दोनों सेनाओं में अपने श्वसुरों और मित्रों को भी खड़ा देखा। वह उन सभी को युद्ध के लिए तैयार देखकर व्याकुल हो गया।
व्याख्या:
जब अर्जुन अपने प्रियजनों को मृत्यु की ओर बढ़ते देखता है, तब उसका हृदय भर आता है।
---
श्लोक 28
कृपया परया विष्टो विषीदन्निदमब्रवीत्।
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्॥
हिंदी अनुवाद:
अर्जुन ने कहा — हे कृष्ण! अपने स्वजनों को युद्ध के लिए खड़ा देखकर मेरा मन दया और करुणा से भर गया है।
व्याख्या:
यहां अर्जुन का मनोबल गिरता है और वह मानसिक द्वंद्व में आ जाता है।
---
श्लोक 29
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति।
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते॥
हिंदी अनुवाद:
मेरे शरीर के अंग कांप रहे हैं, मुख सूख रहा है, शरीर थरथरा रहा है और रोंगटे खड़े हो रहे हैं।
व्याख्या:
अर्जुन की मानसिक अवस्था शारीरिक रूप से भी प्रभावित हो रही है — यह उसके भीतर चल रहे युद्ध का प्रमाण है।
---
श्लोक 30
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते।
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः॥
हिंदी अनुवाद:
गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से गिर रहा है, त्वचा जल रही है और मैं खड़ा भी नहीं हो पा रहा हूँ। मेरा मन भ्रमित हो रहा है।
व्याख्या:
युद्ध के प्रति संकल्प अब टूटने लगा है, अर्जुन अपने कर्तव्य को लेकर डगमगाने लगा है।
---
श्लोक 31
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे॥
हिंदी अनुवाद:
हे केशव! मैं अनिष्ट सूचक लक्षण देख रहा हूँ और अपने ही स्वजनों को मारकर कोई कल्याण नहीं देखता।
व्याख्या:
अर्जुन को लगता है कि यह युद्ध धर्म के विपरीत है और विनाश का कारण बनेगा।
---
श्लोक 32–34
न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा॥
हिंदी अनुवाद:
हे कृष्ण! मुझे न तो विजय चाहिए, न राज्य और न सुख। इन सबसे क्या लाभ जब अपने ही स्वजन युद्ध में मारे जाएंगे?
व्याख्या:
अर्जुन कहता है कि जब प्रियजन ही न रहें तो सुख-संपत्ति का कोई मूल्य नहीं रह जाता।
---
श्लोक 35
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते।
निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन॥
हिंदी अनुवाद:
हे जनार्दन! तीनों लोकों के राज्य के लिए भी मैं धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारना नहीं चाहता, पृथ्वी के राज्य की तो बात ही क्या है।
व्याख्या:
यह अर्जुन का त्यागमय दृष्टिकोण है, लेकिन यह कर्तव्य विमुखता की ओर संकेत करता है।
---
श्लोक 36–38
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः।
तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्॥
हिंदी अनुवाद:
अगर हमने इन्हें मारा तो हम पाप के भागी बनेंगे, भले ही ये हमारे विरुद्ध युद्ध कर रहे हों।
व्याख्या:
अर्जुन धर्म और अधर्म के बीच उलझ गया है और कर्म की दिशा से विचलित होता जा रहा है।
---
श्लोक 39–40
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत॥
हिंदी अनुवाद:
जब कुल का नाश होता है, तब कुल के सनातन धर्म भी नष्ट हो जाते हैं, और धर्म के नष्ट होने पर अधर्म हावी हो जाता है।
व्याख्या:
अर्जुन युद्ध को सामाजिक और नैतिक विनाश का कारण मानता है और इसी कारण वह पीछे हटने की सोचने लगा है।
---
अंतिम शब्द:
इन श्लोकों में अर्जुन के मन में चल रहा भय, मोह और द्वंद्व साफ झलकता है। वह धर्म और करुणा के बीच फँस जाता है। आगे आने वाले श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण इस भ्रम को दूर करेंगे।
---
अगली पोस्ट में: श्लोक 41–47 (अध्याय 1 का समापन) तैयार रहिये!
---
अगर आपने अभी तक हमारे ब्लॉग के श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 1 से 10 तक और अध्याय 1 का 11 से 25 तक को नहीं पढ़ा है। तो नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें। संपूर्ण हनुमान चालीसा का भी लिंक नीचे दिया गया है, उसे भी अवश्य पढ़े।
भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 1 - 10 | अर्जुन विषाद योग | हिंदी अनुवाद व सरल अर्थ
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 11 से 25 तक ( हिंदी अर्थ व सरल व्याख्या )
हनुमान चालीसा संपूर्ण पाठ हिंदी अर्थ और व्याख्या सहित
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें