श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1: श्लोक 41 से 47 तक (हिंदी अनुवाद व व्याख्या)

 श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1: श्लोक 41 से 47 तक (हिंदी अनुवाद व व्याख्या)

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1: श्लोक 41 से 47 तक (हिंदी अनुवाद व व्याख्या)


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श्रीमद्भगवद्गीता के पहले अध्याय का यह अंतिम भाग अर्जुन की गहरी मानसिक पीड़ा को दर्शाता है।

कुल 47 श्लोकों में अर्जुन की मनोस्थिति युद्ध से पहले कैसे बदलती है, इसका विस्तृत चित्रण मिलता है।

श्लोक 41 से 47 तक वह धर्म, परंपरा, कुल विनाश और अपने कर्तव्यों को लेकर अत्यधिक भ्रमित और व्यथित दिखाई देते हैं।

यह श्रृंखला हर श्लोक का हिंदी अनुवाद और सरल व्याख्या प्रस्तुत करती है।

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श्लोक 41

अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः।

स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकरः।।

हिंदी अनुवाद:

हे कृष्ण! जब अधर्म बढ़ता है, तब कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं, और स्त्रियों के दूषित होने पर वर्णसंकर सन्तान उत्पन्न होती है।

व्याख्या:

अर्जुन कह रहे हैं कि यदि धर्म का पालन नहीं हुआ, तो समाज की नैतिकता टूट जाएगी। स्त्रियों की मर्यादा खतरे में पड़ेगी और उससे आगे समाज की संरचना भी प्रभावित होगी।

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श्लोक 42

सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च।

पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः।।

हिंदी अनुवाद:

वर्णसंकर सन्तान नरक का कारण बनती है, जिससे कुल का पतन होता है और पितरों के लिए पिंड-जल की क्रियाएँ भी समाप्त हो जाती हैं।

व्याख्या:

धर्म के अनुसार श्राद्ध आदि कर्मों के बिना पूर्वजों की आत्मा को शांति नहीं मिलती। अर्जुन को भय है कि युद्ध से यह परंपराएँ टूट जाएँगी।

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श्लोक 43

दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकैः।

उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः।।

हिंदी अनुवाद:

इन दोषों के कारण कुल और जाति के शाश्वत धर्म नष्ट हो जाते हैं।

व्याख्या:

अर्जुन कह रहे हैं कि यदि युद्ध हुआ तो न केवल परिवार, बल्कि पीढ़ियों से चले आ रहे धर्म और संस्कार भी समाप्त हो जाएँगे।

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श्लोक 44

उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन।

नरके नियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम।।

हिंदी अनुवाद:

हे जनार्दन! जिनका कुलधर्म नष्ट हो जाता है, उनका नरक में स्थायी निवास होता है – ऐसा हमने सुना है।

व्याख्या:

यहाँ अर्जुन पूर्व परंपराओं और श्रुतियों के अनुसार कह रहे हैं कि कुलधर्म से भ्रष्ट व्यक्ति का जीवन और परलोक दोनों संकट में आ जाते हैं।

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श्लोक 45

अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्।

यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यता:।।

हिंदी अनुवाद:

हाय! हम कितना बड़ा पाप करने जा रहे हैं, जो राज्य और सुख के लोभ में अपने ही स्वजनों को मारने को तैयार हैं।

व्याख्या:

यहाँ अर्जुन को अपने निर्णय पर गहरा पश्चाताप हो रहा है। वे युद्ध को पाप मान रहे हैं और राज्य की इच्छा को दोष दे रहे हैं।

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श्लोक 46

यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः।

धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत्।।

हिंदी अनुवाद:

यदि शस्त्रधारी कौरव मुझे निहत्था और न लड़ने वाला समझकर युद्ध में मार डालें, तो वह मेरे लिए अधिक कल्याणकारी होगा।

व्याख्या:

अर्जुन युद्ध से पूर्ण रूप से विरक्त हो चुके हैं। वे हथियार डाल देने की बात कर रहे हैं — यहां तक कि मर जाना उन्हें बेहतर लग रहा है।

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श्लोक 47

सञ्जय उवाच —

एवमुक्त्वार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत्।

विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः।।

हिंदी अनुवाद:

संजय बोले – ऐसा कहकर अर्जुन युद्धभूमि में रथ पर बैठ गए और अपने धनुष-बाण छोड़ दिए। उनका मन शोक से व्याकुल हो गया था।

व्याख्या:

यह अध्याय का अंतिम और निर्णायक श्लोक है। अर्जुन की मानसिक स्थिति बेहद कमजोर हो चुकी है। वह युद्ध करने में असमर्थ हो चुके हैं।

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( अध्याय 1 समाप्त )

अध्याय 1 के सभी भागों को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।






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