श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 – श्लोक 11 से 20 तक | हिंदी अनुवाद और सरल व्याख्या
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 – श्लोक 11 से 20 तक | हिंदी अनुवाद और सरल व्याख्या
परिचय:
भगवद्गीता का दूसरा अध्याय, “सांख्य योग”, जीवन, मृत्यु और आत्मा के रहस्य को उजागर करता है। श्लोक 11 से 20 तक श्रीकृष्ण आत्मा की अमरता, शरीर की नश्वरता और ज्ञान के महत्व को स्पष्ट करते हैं। आइए इन्हें समझते हैं हिंदी अनुवाद और आसान भाषा में व्याख्या के साथ।
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श्लोक 11
श्रीभगवान बोले —
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः॥
हिंदी अनुवाद:
तू जिनके लिए शोक कर रहा है, वे शोक के योग्य नहीं हैं, फिर भी तू बुद्धिमान जैसी बातें कर रहा है। किंतु ज्ञानी पुरुष न तो मृत हुए लोगों के लिए शोक करते हैं, और न जीवितों के लिए।
सरल व्याख्या:
भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो सच्चे ज्ञानी होते हैं, वे आत्मा की अमरता को समझते हैं, इसलिए किसी के मरने या जीने पर शोक नहीं करते।
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श्लोक 12
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्॥
हिंदी अनुवाद:
न तो मैं कभी नहीं था, न तू, न ये राजा लोग — और न ही आगे हम कभी नहीं रहेंगे।
सरल व्याख्या:
हम सब आत्मा हैं और आत्मा न पहले मरी थी, न अब मरती है, न भविष्य में मरेगी। शरीर बदलते हैं, आत्मा नहीं।
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श्लोक 13
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति॥
हिंदी अनुवाद:
जैसे इस शरीर में बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था आती है, वैसे ही आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरा प्राप्त करती है। ज्ञानी पुरुष इसमें मोहित नहीं होते।
सरल व्याख्या:
शरीर बदलना आत्मा के लिए सामान्य प्रक्रिया है — जैसे कपड़े बदलना। समझदार लोग इससे विचलित नहीं होते।
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श्लोक 14
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु:खदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥
हिंदी अनुवाद:
हे कुन्तीपुत्र! सर्दी-गर्मी और सुख-दुख शरीर के संपर्क से उत्पन्न होते हैं। ये आते-जाते रहते हैं, इसलिए इन्हें सहन करो।
सरल व्याख्या:
दुनिया में सुख-दुख अस्थायी हैं। समझदारी इसी में है कि उन्हें सहन करना सीखो।
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श्लोक 15
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।
समदु:खसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते॥
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति इन सुख-दुखों से विचलित नहीं होता और समभाव बनाए रखता है, वही अमरत्व (मोक्ष) के योग्य होता है।
सरल व्याख्या:
सच्चा योगी वह है जो हर परिस्थिति में शांत और संतुलित रहता है। वही मोक्ष के मार्ग पर चलता है।
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श्लोक 16
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः॥
हिंदी अनुवाद:
जो असत्य है उसका कोई अस्तित्व नहीं है, और जो सत्य है उसका कभी नाश नहीं होता। यह विवेक ज्ञानी लोग जानते हैं।
सरल व्याख्या:
सत्य (आत्मा) सदा रहता है। असत्य (शरीर) नश्वर है। जो इस सच्चाई को जान लेता है, वह भय से मुक्त हो जाता है।
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श्लोक 17
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति॥
हिंदी अनुवाद:
जिससे यह सम्पूर्ण जगत व्याप्त है, उस अविनाशी आत्मा को जानो। उसका विनाश कोई नहीं कर सकता।
सरल व्याख्या:
आत्मा अजर, अमर, अविनाशी है। इसे कोई नहीं मार सकता, न आग, न शस्त्र, न पानी।
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श्लोक 18
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः।
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत॥
हिंदी अनुवाद:
ये शरीर नाशवान हैं, लेकिन आत्मा नित्य और अमाप्य है। इसलिए हे भारत! तू युद्ध कर।
सरल व्याख्या:
शरीर मिट जाएगा लेकिन आत्मा सदा रहेगी। धर्म के लिए लड़ना कोई पाप नहीं है।
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श्लोक 19
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥
हिंदी अनुवाद:
जो आत्मा को मारने वाला समझता है और जो आत्मा को मरा हुआ मानता है — दोनों ही अज्ञानी हैं। आत्मा न मारती है, न मारी जा सकती है।
सरल व्याख्या:
आत्मा अजर-अमर है। इसे कोई मार नहीं सकता, इसलिए मारने और मरने की बात केवल शरीर तक सीमित है।
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श्लोक 20
न जायते म्रियते वा कदाचित्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥
हिंदी अनुवाद:
आत्मा कभी जन्म नहीं लेती, न कभी मरती है। न यह पैदा हुई थी, न आगे होगी। यह अजन्मा, शाश्वत, पुरातन और अमर है। शरीर के नष्ट होने पर भी आत्मा नष्ट नहीं होती।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक आत्मा की अमरता का सार है। आत्मा अनादि और अनंत है — यह कभी नहीं मरती।
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समापन:
इन श्लोकों से स्पष्ट होता है कि श्रीकृष्ण हमें सिखा रहे हैं कि जीवन केवल शरीर तक सीमित नहीं है। आत्मा अमर है और हमें आत्मज्ञान प्राप्त कर कर्म के पथ पर बढ़ना चाहिए। अगले भाग में श्लोक 21 से 30 की व्याख्या करेंगे।
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