श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 16 – दैवी और आसुरी गुणों की पहचान | सरल हिंदी में व्याख्या सहित
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 16 – दैवी और आसुरी गुणों की पहचान | सरल हिंदी में व्याख्या सहित
🏵️ श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 16
🪷 परिचय:
श्रीमद्भगवद्गीता का 16वां अध्याय "दैवासुर सम्पद् विभाग योग" जीवन के दो मुख्य स्वभावों – दैवी और आसुरी – का गहराई से वर्णन करता है।
इस अध्याय में श्रीकृष्ण बताते हैं कि कौन-से गुण हमें मोक्ष की ओर ले जाते हैं और कौन-से पतन की ओर।
यह अध्याय आत्मनिरीक्षण का अवसर देता है — हम किस ओर जा रहे हैं?
आइए पढ़ते हैं इस अध्याय के सुंदर श्लोक, सरल हिंदी अर्थ और व्याख्या के साथ।
✨ दैवासुर सम्पद् विभाग योग
🕉️ ईश्वरी और आसुरी प्रवृत्तियों का वर्णन 🌼
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📜 श्लोक 1
अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्॥१॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
निर्भयता, चित्त की पवित्रता, ज्ञान और योग में स्थित रहना, दान देना, इंद्रियों का संयम, यज्ञ करना, वेदों का अध्ययन, तपस्या और सरलता – ये दिव्य गुण हैं।
🧠 सरल व्याख्या:
जो व्यक्ति भगवान के मार्ग पर चलता है, उसमें ये गुण स्वतः आते हैं। ऐसे लोग निडर होते हैं, दानशील होते हैं और सच्चाई से जीवन जीते हैं।
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📜 श्लोक 2
अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्।
दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्॥२॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
अहिंसा, सत्य, क्रोध न करना, त्याग, शांत स्वभाव, चुगली न करना, प्राणियों के प्रति दया, इच्छाओं से मुक्त रहना, कोमलता, लज्जा और चंचलता से रहित होना – ये भी दैवी गुण हैं।
🧠 सरल व्याख्या:
जो आत्मा की ओर अग्रसर होता है, उसमें दया, शांति और आत्मसंयम जैसे गुण होते हैं। वह दूसरों को दुख नहीं देता।
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📜 श्लोक 3
तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत॥३॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
तेजस्विता, क्षमा, धैर्य, शुद्धता, किसी से द्वेष न करना और घमंड न करना – ये सभी दैवी सम्पत्ति के लक्षण हैं।
🧠 सरल व्याख्या:
जो लोग भगवान की ओर बढ़ते हैं, उनमें ये दिव्य गुण स्वभाव से ही आते हैं। ये गुण आत्मविकास के संकेत हैं।
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📜 श्लोक 4
दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदामासुरीम्॥४॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
दंभ (घमंड), अभिमान, क्रोध, कठोरता और अज्ञान – ये आसुरी स्वभाव के लक्षण हैं।
🧠 सरल व्याख्या:
जिस व्यक्ति में ये अवगुण हैं, वह विनाश की ओर जा रहा होता है। ये प्रवृत्तियाँ अधर्म और पतन की राह हैं।
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📜 श्लोक 5
दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।
मा शुचः सम्पदं दैवीं अभिजातोऽसि पाण्डव॥५॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
दैवी सम्पदा मोक्ष की ओर ले जाती है, और आसुरी सम्पदा बंधन की ओर। हे पांडव! तुम चिंता मत करो, तुम दैवी सम्पत्ति से युक्त हो।
🧠 सरल व्याख्या:
भगवान अर्जुन को आश्वासन दे रहे हैं कि तुम दिव्य गुणों वाले हो, इसलिए मोक्ष का मार्ग तुम्हारे लिए खुला है।
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📜 श्लोक 6
द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन् दैव आसुर एव च।
दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ मे शृणु॥६॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
इस संसार में दो प्रकार के जीव होते हैं – दैवी स्वभाव वाले और आसुरी स्वभाव वाले। दैवी स्वभाव का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है, अब हे पार्थ! आसुरी स्वभाव को सुनो।
🧠 सरल व्याख्या:
भगवान बताते हैं कि संसार में लोग या तो ईश्वर की ओर बढ़ते हैं या उनसे दूर जाते हैं। अब वो बताने जा रहे हैं कि आसुरी लोग कैसे होते हैं।
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📜 श्लोक 7
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः।
न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते॥७॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
आसुरी लोग यह नहीं जानते कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं। उनमें न शुद्धता होती है, न अच्छा आचरण, और न ही सत्य होता है।
🧠 सरल व्याख्या:
अधर्मी व्यक्ति अपने कर्तव्य को नहीं जानता। वो स्वच्छता, नीति और सच्चाई को महत्व नहीं देता।
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📜 श्लोक 8
असत्यं अप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्।
अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम्॥८॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
वे कहते हैं कि यह संसार असत्य है, बिना आधार के है, और भगवान का कोई अस्तित्व नहीं है। यह केवल कामनाओं के कारण उत्पन्न हुआ है।
🧠 सरल व्याख्या:
आसुरी लोग भगवान को नहीं मानते। उन्हें लगता है कि जीवन सिर्फ इंद्रिय-सुख के लिए है, और इसका कोई उच्च उद्देश्य नहीं है।
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📜 श्लोक 9
एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः।
प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽहिताः॥९॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
ऐसी नास्तिक दृष्टि को अपनाकर, आत्मा को नष्ट करने वाले, अल्पबुद्धि वाले लोग भयंकर कर्मों में प्रवृत्त होते हैं और संसार का नाश करते हैं।
🧠 सरल व्याख्या:
जो लोग ईश्वर को नहीं मानते, वे अनैतिक कर्म करते हैं और समाज व स्वयं के पतन का कारण बनते हैं।
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📜 श्लोक 10
काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः।
मोहाद्गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः॥१०॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
अत्यधिक वासनाओं में डूबे हुए, दंभ और घमंड से युक्त ये लोग मिथ्या ज्ञान को पकड़कर अपवित्र जीवन जीते हैं।
🧠 सरल व्याख्या:
ये लोग अपनी इच्छाओं को कभी नहीं छोड़ते, और झूठे विचारों में विश्वास रखते हैं। उनका आचरण अशुद्ध होता है।
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📜 श्लोक 11
चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः।
कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिता:॥११॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
वे अनंत चिंताओं में घिरे रहते हैं, जो मृत्यु तक पीछा नहीं छोड़तीं। उन्हें लगता है कि इंद्रिय-सुख ही सबकुछ है – यही जीवन का लक्ष्य है।
🧠 सरल व्याख्या:
आसुरी प्रवृत्ति वाले लोग केवल भौतिक सुखों के पीछे भागते हैं। उनकी इच्छाएं कभी खत्म नहीं होतीं और वे हमेशा चिंता में डूबे रहते हैं।
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📜 श्लोक 12
आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः।
ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान्॥१२॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
सैकड़ों आशाओं से बंधे हुए, काम और क्रोध के अधीन ये लोग अन्याय से धन-संपत्ति की इच्छा करते हैं।
🧠 सरल व्याख्या:
इन्हें बस धन, सुख और सत्ता चाहिए – चाहे वो किसी भी गलत तरीके से क्यों न मिले। ये अधर्मी होते हैं।
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📜 श्लोक 13
इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम्।
इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम्॥१३॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
वे सोचते हैं – "मैंने यह पा लिया, अब अगली इच्छा भी पूरी कर लूंगा। मेरे पास यह है और और भी धन मिलेगा।"
🧠 सरल व्याख्या:
इनकी लालसा कभी खत्म नहीं होती। हर पल वे कुछ और पाने की योजना बनाते रहते हैं।
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📜 श्लोक 14
असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि।
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी॥१४॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
"मैंने इस शत्रु को मार दिया और बाकी को भी मार दूँगा। मैं ही ईश्वर हूँ, मैं ही भोगी, सिद्ध, बलवान और सुखी हूँ।"
🧠 सरल व्याख्या:
अहंकार इतना बढ़ जाता है कि वे खुद को ही सबकुछ मानने लगते हैं – जैसे वे ही भगवान हों।
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📜 श्लोक 15
आढ्योऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः॥१५॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
"मैं धनवान और कुलीन हूँ, मेरे समान कोई नहीं। मैं यज्ञ करूँगा, दान दूँगा और आनंद लूँगा।" ऐसे लोग अज्ञान से मोहित होते हैं।
🧠 सरल व्याख्या:
वे धार्मिक कर्म भी दिखावे के लिए करते हैं – असली श्रद्धा नहीं होती।
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📜 श्लोक 16
अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः।
प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ॥१६॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
उनकी बुद्धि अनेक विचारों में भटकती रहती है, मोह के जाल में फंसी होती है। वे कामभोग में लिप्त होकर अशुद्ध नरक में गिरते हैं।
🧠 सरल व्याख्या:
अंततः ऐसे लोग पतन को प्राप्त होते हैं, क्योंकि वे आत्मा के मार्ग को भूल चुके होते हैं।
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📜 श्लोक 17
आत्मसम्माविता: स्तब्धा: धनमानमदान्विता:।
यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम्॥१७॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
वे अहंकार से भरपूर, घमंडी और दंभ से यज्ञ करते हैं – परंतु विधिवत नहीं।
🧠 सरल व्याख्या:
इनका पूजा-पाठ दिखावे के लिए होता है। इनमें न भक्ति होती है, न श्रद्धा।
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📜 श्लोक 18
अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिता:।
मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः॥१८॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
वे अहंकार, बल, दंभ, कामना और क्रोध में फंसे रहते हैं, और दूसरों के शरीर में स्थित मुझ परमात्मा से द्वेष करते हैं।
🧠 सरल व्याख्या:
ऐसे लोग अपने अहंकार में इतने डूबे होते हैं कि वे दूसरों में भी भगवान को नहीं देख पाते।
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📜 श्लोक 19
तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान्।
क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु॥१९॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
मैं उन द्वेषी, क्रूर और अधम लोगों को आसुरी योनियों में बार-बार जन्म देता हूँ।
🧠 सरल व्याख्या:
भगवान उन्हें सत्कार्य से दूर रखते हैं, ताकि वे अपने कर्मों का फल भुगतें और सीख सकें।
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📜 श्लोक 20
आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि।
मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्॥२०॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
हे कौन्तेय! आसुरी योनि में जन्म लेने वाले ये मूर्ख मुझ तक नहीं पहुँचते और नीच गति को प्राप्त होते हैं।
🧠 सरल व्याख्या:
ऐसे लोग भगवान से दूर हो जाते हैं और बार-बार जन्म मृत्यु के चक्र में फँसे रहते हैं।
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📜 श्लोक 21
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्॥२१॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
काम (वासना), क्रोध और लोभ – ये नरक के तीन द्वार हैं। इनसे आत्मा का पतन होता है, इसलिए इन्हें त्याग देना चाहिए।
🧠 सरल व्याख्या:
यदि मोक्ष चाहिए, तो इन तीन दोषों को छोड़ना अनिवार्य है।
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📜 श्लोक 22
एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः।
आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम्॥२२॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति इन तीन नरक द्वारों से मुक्त होकर श्रेष्ठ कर्म करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है।
🧠 सरल व्याख्या:
वासनाओं से मुक्त होकर, जो धर्म और सत्य के मार्ग पर चलता है – वही सच्चे मोक्ष का अधिकारी बनता है।
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📜 श्लोक 23
यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्॥२३॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
जो शास्त्रों की मर्यादा छोड़कर केवल इच्छानुसार कर्म करता है, वह न तो सिद्धि पाता है, न सुख और न ही मोक्ष।
🧠 सरल व्याख्या:
शास्त्रों का पालन ही सच्चा मार्ग है। मनमानी चलाना आत्मा के लिए घातक है।
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📜 श्लोक 24
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि॥२४॥
🔶 हिंदी अनुवाद:
इसलिए, शास्त्र को ही अपने कर्मों का मापदंड मानो। क्या करना है और क्या नहीं, यह जानकर ही कार्य करो।
🧠 सरल व्याख्या:
भगवान अंतिम उपदेश देते हैं – शास्त्र ही जीवन का मार्गदर्शक है। उसके अनुसार ही कर्म करना चाहिए।
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🔔 समापन मंत्र:
🌼 इस अध्याय का सार —
"दैवी गुण हमें मोक्ष की ओर ले जाते हैं, जबकि आसुरी गुण पतन की ओर। हमारे कर्म और स्वभाव ही हमें भगवान से जोड़ते हैं या दूर ले जाते हैं।"
Jai Shree Radhe Krishna Ji 🙏🚩🕉️❤️🔔🪔🙏
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