श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 15 – पुरुषोत्तम योग | सम्पूर्ण श्लोक, अर्थ और व्याख्या
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 15 – पुरुषोत्तम योग | सम्पूर्ण श्लोक, अर्थ और व्याख्या
📜 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 15 : पुरुषोत्तम योग
🕉️ "संपूर्ण संसार के मूल स्वरूप को जानने का मार्ग"
🔱 "परम पुरुष को जानना ही सबसे श्रेष्ठ ज्ञान है..."
✨ परिचय (Intro):
यह अध्याय संसार रूपी उल्टे वृक्ष की रहस्यमयी व्याख्या करता है।
भगवान श्रीकृष्ण इसे पुरुषोत्तम ज्ञान के रूप में प्रकट करते हैं।
मनुष्य के जीवन में वैराग्य, आत्मबोध और परम धाम की ओर चलने का मार्ग इसमें छिपा है।
अंत में श्रीकृष्ण स्वयं को पुरुषोत्तम घोषित करते हैं।
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🌿 श्लोक 1
उर्ध्वमूलमध:शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्॥
📗 हिंदी अनुवाद:
जिसका मूल ऊपर (परमात्मा में) है और शाखाएँ नीचे फैली हैं, उस अविनाशी अश्वत्थ वृक्ष को कहते हैं। इसके पत्ते वेद हैं। जो इस वृक्ष को जानता है, वह वेद को जानने वाला है।
🌼 सरल व्याख्या:
यह संसार एक विशाल पीपल के पेड़ जैसा है। इसका मूल परमात्मा है और इसकी शाखाएं संसार के विविध कार्य हैं। जो इस रहस्य को समझता है, वही सच्चा ज्ञानी है।
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🌿 श्लोक 2
अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा
गुणप्रवृद्धा विषयप्रवालाः।
अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि
कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके॥
📗 हिंदी अनुवाद:
उसके नीचे और ऊपर शाखाएं फैली हुई हैं, जो त्रिगुणों से पोषित हैं और विषयों की कोपलों से युक्त हैं। नीचे की ओर उसकी जड़ें कर्मों से बंधी हुई हैं, जो मनुष्य लोक में फैली हुई हैं।
🌼 सरल व्याख्या:
इस संसार रूपी वृक्ष की शाखाएं ऊपर-नीचे फैली हैं, जो इच्छाओं और कर्मों से मजबूत होती हैं। इंसान इन कर्मों से बंधा हुआ रहता है।
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🌿 श्लोक 3
न रूपमस्येह तथोपलभ्यते
नान्तो न चादिर्न च संप्रतिष्ठा।
अश्वत्थमेनं सुविरूढमूलं
असङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा॥
📗 हिंदी अनुवाद:
इस संसार वृक्ष का वास्तविक रूप यहां समझ में नहीं आता, न इसका आदि है, न अंत और न ही इसका आधार। इस दृढ़मूल अश्वत्थ वृक्ष को वैराग्य रूपी शस्त्र से काटना चाहिए।
🌼 सरल व्याख्या:
इस संसार का स्वरूप भ्रमित करने वाला है, इसकी कोई शुरुआत या स्पष्ट अंत नहीं है। इसलिए, मोह-माया से अलग होकर विवेक रूपी तलवार से इसे समाप्त करना चाहिए।
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🌿 श्लोक 4
ततः पदं तत्परिमार्गितव्यं
यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूयः।
तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये
यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी॥
📗 हिंदी अनुवाद:
उसके बाद उस परम पद को खोजना चाहिए, जहाँ जाने के बाद कोई लौटकर नहीं आता। उसी आदिपुरुष को मैं शरण करता हूँ, जिससे यह सनातन प्रवृत्ति आरंभ हुई।
🌼 सरल व्याख्या:
जब संसार की माया से मुक्ति पा ली जाती है, तब परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग खुलता है। वही परम पुरुष है, जिससे यह सृष्टि उत्पन्न हुई।
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🌿 श्लोक 5
निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा
अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञैः
गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्॥
📗 हिंदी अनुवाद:
जो अहंकार और मोह से रहित हैं, संग दोषों को जीत चुके हैं, आत्मा में स्थिर हैं, इच्छाओं से मुक्त हैं और सुख-दुख से ऊपर उठ चुके हैं, वे उस अविनाशी पद को प्राप्त करते हैं।
🌼 सरल व्याख्या:
जो व्यक्ति संतुलन बनाए रखते हैं, इच्छा, मोह और द्वंद्वों से मुक्त रहते हैं, वे ही परम सत्य को पा सकते हैं।
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🌿 श्लोक 6
न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम॥
📗 हिंदी अनुवाद:
वह परम धाम ऐसा है जिसे न सूर्य प्रकाशित कर सकता है, न चंद्रमा और न ही अग्नि। वहाँ जाने के बाद जीव फिर कभी लौटकर संसार में नहीं आता।
🌼 सरल व्याख्या:
भगवान का धाम प्रकाश से परे है — वह दिव्यता का केंद्र है। वहाँ पहुँचने पर आत्मा को पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता।
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🌿 श्लोक 7
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।
मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति॥
📗 हिंदी अनुवाद:
इस संसार में स्थित जीवात्मा मेरा ही सनातन अंश है। वह मन और पाँच इंद्रियों को लेकर प्रकृति से प्रभावित होता है।
🌼 सरल व्याख्या:
हर आत्मा भगवान का अंश है। लेकिन जब वह मन और इंद्रियों से जुड़ता है, तब संसार के बंधनों में फँस जाता है।
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🌿 श्लोक 8
शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः।
गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात्॥
📗 हिंदी अनुवाद:
जब आत्मा एक शरीर छोड़कर दूसरा प्राप्त करती है, तब वह अपने मन और इंद्रियों को साथ ले जाती है, जैसे हवा सुगंध को ले जाती है।
🌼 सरल व्याख्या:
मृत्यु के समय आत्मा शरीर तो छोड़ देती है, लेकिन इच्छाएं, संस्कार और इंद्रियों का सूक्ष्म रूप साथ ले जाती है — अगले जन्म तक।
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🌿 श्लोक 9
श्रोत्रं चक्षुः स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च।
अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते॥
📗 हिंदी अनुवाद:
वह आत्मा कान, आंख, स्पर्श, स्वाद, गंध और मन को धारण करके विषयों का अनुभव करती है।
🌼 सरल व्याख्या:
हमारी आत्मा इन पाँच इंद्रियों और मन के माध्यम से संसार को अनुभव करती है — यही जीवन की दिनचर्या है।
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🌿 श्लोक 10
उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुञ्जानं वा गुणान्वितम्।
विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः॥
📗 हिंदी अनुवाद:
मूर्ख लोग यह नहीं समझ पाते कि आत्मा शरीर में कैसे प्रवेश करती है, उसमें स्थित रहती है या विषयों का अनुभव करती है। परंतु ज्ञानी जन इसे ज्ञान की दृष्टि से देख लेते हैं।
🌼 सरल व्याख्या:
जो अज्ञानी हैं, उन्हें आत्मा का रहस्य समझ नहीं आता। लेकिन जो आत्मज्ञानी होते हैं, वे इसे स्पष्ट रूप से देख और अनुभव कर सकते हैं।
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🌿 श्लोक 11
यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम्।
यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतसः॥
📗 हिंदी अनुवाद:
योग में रत साधक अपने अंदर स्थित आत्मा को देखते हैं, लेकिन जिनका मन शुद्ध नहीं है, वे प्रयास करने पर भी आत्मा को नहीं देख पाते।
🌼 सरल व्याख्या:
सच्चे साधक ध्यान और आत्मज्ञान से परमात्मा को अनुभव करते हैं, लेकिन जो भ्रमित और असंयमी हैं, वे इसे नहीं जान पाते।
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🌿 श्लोक 12
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्॥
📗 हिंदी अनुवाद:
जो तेज सूर्य में है, चंद्रमा में है और अग्नि में है, वह मेरा ही तेज समझो।
🌼 सरल व्याख्या:
संसार की सभी प्रकाशमान चीजों में जो तेज दिखता है – वह भगवान श्रीकृष्ण का ही स्वरूप है।
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🌿 श्लोक 13
गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः॥
📗 हिंदी अनुवाद:
मैं पृथ्वी में प्रवेश करके अपने बल से सभी प्राणियों का पोषण करता हूँ, और चंद्रमा बनकर समस्त वनस्पतियों को रस प्रदान करता हूँ।
🌼 सरल व्याख्या:
भगवान ही पृथ्वी में जीवन की ऊर्जा हैं और चंद्रमा के रस के रूप में सभी पेड़ों-पौधों को पोषण देते हैं।
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🌿 श्लोक 14
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्॥
📗 हिंदी अनुवाद:
मैं प्राणियों के शरीर में पाचन अग्नि (वैश्वानर) के रूप में स्थित हूँ, और चार प्रकार के अन्न को पचाता हूँ।
🌼 सरल व्याख्या:
ईश्वर हर जीव के भीतर पाचन शक्ति बनकर काम कर रहे हैं – जो हमें शक्ति और जीवन देते हैं।
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🌿 श्लोक 15
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो
मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यः
वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्॥
📗 हिंदी अनुवाद:
मैं सभी प्राणियों के हृदय में स्थित हूँ; मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और विस्मृति होती है। समस्त वेदों से मैं ही जाना जाता हूँ, मैं ही वेदांत का रचयिता और वेदों का ज्ञाता हूँ।
🌼 सरल व्याख्या:
ईश्वर ही हमारे अंदर ज्ञान, याद और भूलने की शक्ति देते हैं। सारे वेद भी उन्हें जानने के लिए ही हैं।
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🌿 श्लोक 16
द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते॥
📗 हिंदी अनुवाद:
इस संसार में दो प्रकार के पुरुष हैं – एक क्षर (नाशवान) और दूसरा अक्षर (अविनाशी)। सभी जीव क्षर हैं और जो परम आत्मा में स्थित है, वह अक्षर है।
🌼 सरल व्याख्या:
जीवात्मा शरीर लेकर आता है, बदलता है और नाशवान है, जबकि परमात्मा सदा शाश्वत और स्थिर है।
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🌿 श्लोक 17
उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युधाहृतः।
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः॥
📗 हिंदी अनुवाद:
इन दोनों से भिन्न एक तीसरा पुरुष है – परम पुरुष (परमात्मा)। वही तीनों लोकों में व्याप्त होकर सबका पालन करता है और अविनाशी है।
🌼 सरल व्याख्या:
परमात्मा सब जीवों से श्रेष्ठ है, जो पूरे ब्रह्मांड का संचालन करता है – वही पुरुषोत्तम है।
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🌿 श्लोक 18
यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः॥
📗 हिंदी अनुवाद:
क्योंकि मैं नाशवान (जीव) और अविनाशी (परमात्मा) दोनों से श्रेष्ठ हूँ, इसलिए संसार और वेदों में मुझे पुरुषोत्तम कहा गया है।
🌼 सरल व्याख्या:
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – मैं हर चीज़ से श्रेष्ठ हूँ, इसलिए मुझे पुरुषोत्तम (सर्वोत्तम पुरुष) कहा गया है।
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🌿 श्लोक 19
यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम्।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत॥
📗 हिंदी अनुवाद:
जो मुझे पुरुषोत्तम रूप में बिना भ्रम के जानता है, वह सब कुछ जानने वाला होता है और पूर्ण श्रद्धा से मेरी भक्ति करता है।
🌼 सरल व्याख्या:
जो व्यक्ति ईश्वर के इस रूप को सही से समझता है, वह ज्ञानी कहलाता है और पूर्ण भक्ति भाव से भगवान को प्राप्त करता है।
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🌿 श्लोक 20
इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ।
एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत॥
📗 हिंदी अनुवाद:
हे निष्पाप अर्जुन! यह परम गोपनीय शास्त्र मैंने तुमसे कहा। इसे जानकर मनुष्य बुद्धिमान होता है और जीवन का उद्देश्य पूर्ण कर लेता है।
🌼 सरल व्याख्या:
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – यह ज्ञान जीवन का सार है। इसे समझ लेने वाला व्यक्ति संसार के सभी कर्तव्यों को पूर्ण कर चुका होता है।
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📌 अध्याय 15 का सारांश:
🌿 संसार एक उल्टा वृक्ष है, जिसकी जड़ परमात्मा में है।
🌟 सच्चा ज्ञान वही है जिससे हम इस वृक्ष को पहचानें और वैराग्य के द्वारा इसे काटकर भगवान को प्राप्त करें।
🛕 पुरुषोत्तम वही है जो इन सभी से परे, अविनाशी, सबमें स्थित और सबका आधार है – श्रीकृष्ण ही परम पुरुष हैं।
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