श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 14 – तीन गुणों का रहस्य (सत्त्व, रज, तम)

 श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 14 – तीन गुणों का रहस्य (सत्त्व, रज, तम)

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 14 – तीन गुणों का रहस्य (सत्त्व, रज, तम)


🌼 अध्याय 14: गुणत्रय विभाग योग

🔖 तीनों गुणों (सत्त्व, रज, तम) का विस्तार से ज्ञान

📌 पोस्ट परिचय:

सृष्टि को चलाने वाले तीन गुण हैं — सत्त्व, रज और तम।

ये गुण आत्मा को बाँधते हैं और उसके कर्म व स्वभाव को निर्धारित करते हैं।

इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण समझाते हैं कि कैसे इन गुणों से ऊपर उठकर

भक्त ईश्वर का स्वरूप प्राप्त करता है और मोक्ष को पाता है।

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📜 श्लोक 1

श्रीभगवानुवाच —

परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्।

यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः॥

📗 हिंदी अनुवाद:

भगवान बोले — मैं फिर उस श्रेष्ठ ज्ञान को कहूँगा, जिसे जानकर मुनिजन परम सिद्धि को प्राप्त हो जाते हैं।

📄 सरल व्याख्या:

भगवान अर्जुन से कहते हैं कि अब मैं तुम्हें एक बहुत ऊँचा और गूढ़ ज्ञान देने जा रहा हूँ, जिससे पहले के ज्ञानी मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया।

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📜 श्लोक 2

इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः।

सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च॥

📗 हिंदी अनुवाद:

इस ज्ञान को अपनाकर मेरे समान स्वरूप को प्राप्त करने वाले भक्त न तो सृष्टि के समय जन्म लेते हैं और न ही प्रलय में दुखी होते हैं।

📄 सरल व्याख्या:

जो इस ज्ञान को समझकर जीवन जीते हैं, वे जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। वे दिव्य अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं।

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📜 श्लोक 3

मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम्।

संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत॥

📗 हिंदी अनुवाद:

हे भारत! मेरी महाशक्ति (प्रकृति) मेरी योनि है; उसमें मैं गर्भ स्थापित करता हूँ, जिससे सभी प्राणियों की उत्पत्ति होती है।

📄 सरल व्याख्या:

भगवान कहते हैं कि मैं प्रकृति (महाब्रह्म) में बीज डालता हूँ, जिससे सभी जीव उत्पन्न होते हैं। यही ब्रह्माण्ड की रचना है।

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📜 श्लोक 4

सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः।
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता॥

📗 हिंदी अनुवाद:

हे कौन्तेय! सभी योनियों में जो भी रूप उत्पन्न होते हैं, उनके गर्भ की जननी प्रकृति है और बीज देने वाला पिता मैं हूँ।

📄 सरल व्याख्या:

सभी जीव चाहे किसी भी योनि में हों — पशु, पक्षी, मनुष्य — उनके जीवन का कारण मैं हूँ। प्रकृति जननी है और मैं पिता हूँ।

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📜 श्लोक 5

सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः।

निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्॥

📗 हिंदी अनुवाद:

हे महाबाहो! सत्त्व, रज और तम — ये तीनों गुण प्रकृति से उत्पन्न होते हैं और ये अविनाशी आत्मा को शरीर में बाँधते हैं।

📄 सरल व्याख्या:

तीनों गुण (सत्त्व = शुद्धता, रज = क्रियाशीलता, तम = अज्ञान) आत्मा को शरीर में बाँधते हैं, जिससे वह बार-बार जन्म लेता है।

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📜 श्लोक 6

तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम्।

सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ॥

📗 हिंदी अनुवाद:

सत्त्वगुण, क्योंकि वह निर्मल है, प्रकाशमान और दोषरहित होता है। यह सुख और ज्ञान के साथ आत्मा को बाँधता है।

📄 सरल व्याख्या:

सत्त्वगुण अच्छा है लेकिन यह भी बंधन का कारण बनता है — व्यक्ति ज्ञान और सुख की लालसा से जुड़ जाता है।

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📜 श्लोक 7

रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम्।

तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम्॥

📗 हिंदी अनुवाद:

हे अर्जुन! रजोगुण को रागयुक्त (आसक्ति से भरपूर) जानो, जो तृष्णा और संलग्नता से उत्पन्न होता है। यह आत्मा को कर्म में बाँधता है।

📄 सरल व्याख्या:

रजोगुण व्यक्ति को लालच, इच्छाओं और कामनाओं में बाँधता है, जिससे वह बार-बार कर्म करता है और बंधता है।

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📜 श्लोक 8

तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्।

प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत॥

📗 हिंदी अनुवाद:

हे भारत! तमोगुण को अज्ञान से उत्पन्न जानो, जो सभी देहधारियों को मोह में डालता है। यह प्रमाद, आलस्य और निद्रा से आत्मा को बाँधता है।

📄 सरल व्याख्या:

तमोगुण अंधकार और अज्ञान का प्रतीक है — इससे व्यक्ति निष्क्रिय, आलसी और सोया हुआ रहता है, जिससे जीवन का उद्देश्य खो जाता है।

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📜 श्लोक 9

सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत।

ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत॥

📗 हिंदी अनुवाद:

हे भारत! सत्त्वगुण सुख में, रजोगुण कर्मों में और तमोगुण ज्ञान को ढककर प्रमाद (मूढ़ता) में लिप्त करता है।

📄 सरल व्याख्या:

तीनों गुण आत्मा को किसी न किसी स्थिति में बाँधते हैं — सत्त्व सुख में, रज कर्मों में और तम अज्ञानता में।

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📜 श्लोक 10

रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत।

रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा॥

📗 हिंदी अनुवाद:

हे भारत! जब सत्त्वगुण रज और तम को दबा देता है, तब वह प्रबल होता है। उसी प्रकार, रज और तम भी सत्त्व को दबाकर प्रबल होते हैं।

📄 सरल व्याख्या:

हमारे अंदर ये तीनों गुण हमेशा एक-दूसरे से लड़ते हैं। जो भी गुण अधिक प्रभावी होता है, वही हमारे व्यवहार को नियंत्रित करता है।

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📜 श्लोक 11

सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते।

ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत॥

📗 हिंदी अनुवाद:

जब इस शरीर के सभी द्वारों (इंद्रियों) में प्रकाश (ज्ञान का अनुभव) होने लगता है, तब जानो कि सत्त्वगुण की वृद्धि हो गई है।

📄 सरल व्याख्या:

जब मन शांत होता है, सोच स्पष्ट होती है, और जीवन में विवेक बढ़ता है — तब समझो सत्त्वगुण सक्रिय है।

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📜 श्लोक 12

लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा।

रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ॥

📗 हिंदी अनुवाद:

हे भरतश्रेष्ठ! जब लोभ, अत्यधिक क्रियाशीलता, कामनाएँ और अशांति बढ़ने लगे, तो जानो कि रजोगुण की वृद्धि हो रही है।

📄 सरल व्याख्या:

जब मन कभी संतुष्ट नहीं होता, व्यक्ति हमेशा कुछ ना कुछ चाहता है, तो यह रजोगुण का संकेत है।

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📜 श्लोक 13

अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च।

तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन॥

📗 हिंदी अनुवाद:

हे कुरुनन्दन! जब अंधकार, निष्क्रियता, आलस्य, प्रमाद और मोह बढ़े, तो समझो कि तमोगुण बढ़ गया है।

📄 सरल व्याख्या:

जब व्यक्ति गलत-सही नहीं सोच पाता, हर चीज़ से विमुख हो जाता है — तब तमोगुण प्रभाव में होता है।

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📜 श्लोक 14

यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत्।

तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते॥

📗 हिंदी अनुवाद:

जब कोई सत्त्वगुण की स्थिति में शरीर त्यागता है, तो वह शुद्ध और उच्च लोकों को प्राप्त होता है।

📄 सरल व्याख्या:

जो व्यक्ति ज्ञान और भक्ति से जीवन जीकर शरीर छोड़ता है, वह स्वर्ग या उच्चतर आध्यात्मिक लोकों को प्राप्त करता है।

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📜 श्लोक 15

रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते।

तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते॥

📗 हिंदी अनुवाद:

रजोगुण में मरा हुआ व्यक्ति कर्म प्रधान लोगों के बीच जन्म लेता है। और तमोगुण में मरा व्यक्ति मूर्खता से भरी योनियों में जन्म पाता है।

📄 सरल व्याख्या:

जिस समय मृत्यु होती है, उस समय जो गुण प्रभावी होता है, वही अगले जन्म को निर्धारित करता है।

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📜 श्लोक 16

कर्मणः सुकृतस्याहुः सत्त्विकं निर्मलं फलम्।

रजसस्तु फलं दुःखं तमसः ज्ञानमजं तमः॥

📗 हिंदी अनुवाद:

सत्त्वगुण से उत्पन्न कर्म का फल निर्मल और सुखद होता है, रजोगुण का फल दुखद और तमोगुण का फल अज्ञानपूर्ण होता है।

📄 सरल व्याख्या:

हर कर्म का एक फल होता है — सत्त्व से शांति, रज से थकान और तम से अंधकार प्राप्त होता है।

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📜 श्लोक 17

सत्त्वात्संजायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च।

प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च॥

📗 हिंदी अनुवाद:

सत्त्व से ज्ञान उत्पन्न होता है, रज से लोभ, और तम से प्रमाद, मोह तथा अज्ञान उत्पन्न होता है।

📄 सरल व्याख्या:

तीनों गुण हमारे जीवन की दिशा तय करते हैं — ज्ञान, इच्छाएँ या भ्रम — यह सब गुणों पर निर्भर करता है।

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📜 श्लोक 18

ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः।

जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः॥

📗 हिंदी अनुवाद:

सत्त्वगुण में स्थित लोग ऊपर (उत्कृष्ट लोकों) को जाते हैं, रजोगुण वाले मध्य में रहते हैं, और तमोगुण में स्थित लोग अधोगति को प्राप्त होते हैं।

📄 सरल व्याख्या:

गुणों के आधार पर मृत्यु के बाद आत्मा की गति तय होती है — ऊपर, बीच में या नीचे।

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📜 श्लोक 19

नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति।

गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति॥

📗 हिंदी अनुवाद:

जब ज्ञानी पुरुष यह जान लेता है कि गुण ही सब कुछ कराते हैं और आत्मा अलग है, तब वह मेरी दिव्य स्थिति को प्राप्त करता है।

📄 सरल व्याख्या:

जिस दिन हम समझ जाएँ कि हम शरीर नहीं हैं, और सत्त्व-रज-तम से परे हैं — उसी दिन मोक्ष के मार्ग पर चल पड़ते हैं।

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📜 श्लोक 20

गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्।

जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते॥

📗 हिंदी अनुवाद:

जो जीवात्मा इन तीनों गुणों को पार कर लेता है, वह जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा और दुखों से मुक्त होकर अमृत (मोक्ष) को प्राप्त करता है।

📄 सरल व्याख्या:

जो व्यक्ति इन गुणों के पार चला जाता है, वही सच्चा मुक्त पुरुष होता है — उसे फिर कोई कष्ट नहीं छूता।

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📜 श्लोक 21

अर्जुन उवाच —

कैर्लिङ्गैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो।

किमाचारः कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते॥

📗 हिंदी अनुवाद:

अर्जुन ने पूछा — हे प्रभो! किस प्रकार के लक्षणों से जाना जा सकता है कि कोई पुरुष तीनों गुणों से ऊपर उठ गया है? उसका आचरण कैसा होता है और वह गुणों को कैसे पार कर लेता है?

📄 सरल व्याख्या:

अर्जुन जानना चाहते हैं — जो व्यक्ति सत्त्व, रज, तम से ऊपर उठ चुका है, उसकी पहचान और जीवनचर्या कैसी होती है?

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📜 श्लोक 22-23

श्रीभगवानुवाच —

प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव।

न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति॥

उदासीनवदासीनो गुणैर्यो न विचाल्यते।

गुणा वर्तन्त इत्येवं योऽवतिष्ठति नेङ्गते॥

📗 हिंदी अनुवाद:

भगवान बोले — हे पाण्डव! जो व्यक्ति सत्त्व के प्रकाश, रज की क्रियाशीलता और तम के मोह को न तो द्वेष करता है, न ही उनसे आसक्ति रखता है —

जो गुणों की क्रियाओं में उदासीन रहता है और सोचता है कि "गुण ही कार्य कर रहे हैं", वह विचलित नहीं होता।

📄 सरल व्याख्या:

गुणातीत व्यक्ति ना किसी गुण को पसंद करता है, ना नापसंद। वह एक साक्षी भाव से देखता है — जैसे वह कर्मों का करता नहीं, केवल दर्शक हो।

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📜 श्लोक 24

समदुःखसुखः स्वस्थः समलोष्टाश्मकाञ्चनः।

तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः॥

📗 हिंदी अनुवाद:

वह व्यक्ति सुख-दुख में समान रहता है, आत्मनियंत्रित होता है, मिट्टी-पत्थर-सोने को समान समझता है।

प्रिय-अप्रिय, निंदा-स्तुति में भी समान भाव रखता है और स्थिर चित्त रहता है।

📄 सरल व्याख्या:

गुणातीत पुरुष न तो तारीफ में फूलता है, न ही आलोचना से टूटता है। वह अपने भीतर स्थित दिव्यता में संतुष्ट होता है।

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📜 श्लोक 25

मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः।

सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते॥

📗 हिंदी अनुवाद:

जो मान-अपमान, मित्र और शत्रु में समान रहता है, और सभी प्रारंभिक कर्मों को त्याग चुका है — वही गुणातीत कहलाता है।

📄 सरल व्याख्या:

सच्चा मुक्त व्यक्ति सभी द्वंद्वों से ऊपर होता है — वह न कोई नया कर्म शुरू करता है, न पुरानों में उलझता है।

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📜 श्लोक 26

मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते।

स गुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते॥

📗 हिंदी अनुवाद:

जो मनुष्य अविचलित भक्ति से मेरी सेवा करता है, वह इन तीनों गुणों को पार करके ब्रह्मरूप (ईश्वरतुल्य) हो जाता है।

📄 सरल व्याख्या:

अटल और पवित्र भक्ति ही वह मार्ग है जिससे व्यक्ति गुणों से ऊपर उठ सकता है और ईश्वर का साक्षात्कार कर सकता है।

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📜 श्लोक 27

ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य च।

शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च॥

📗 हिंदी अनुवाद:

क्योंकि मैं ही उस अविनाशी ब्रह्म का आधार हूँ, जो अमृत, शाश्वत धर्म और परम सुख का स्वरूप है।

📄 सरल व्याख्या:

भगवान श्रीकृष्ण स्वयं उस ब्रह्म के भी मूल हैं — वही सत्य, आनंद और धर्म का अंतिम आधार हैं।

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🌟 अध्याय 14 का सारांश:

🔹 सत्त्व, रज, तम — तीनों गुण आत्मा को बाँधते हैं

🔹 जो व्यक्ति साक्षी भाव, समता, और निरंतर भक्ति में रहता है — वही गुणातीत होता है

🔹 गुणों से ऊपर उठकर ही मोक्ष, अमरत्व और परम आनंद प्राप्त होता है

🔔 भक्ति ही वह मूल साधन है जिससे यह संभव होता है।


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