श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 12 – भक्तियोग | सरल व्याख्या और हिंदी अनुवाद सहित (Shloka 1-20)
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 12 – भक्तियोग | सरल व्याख्या और हिंदी अनुवाद सहित (Shloka 1-20)
🕉️ श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 12 : भक्तियोग
📜 Shloka 1 to 20 with Hindi Meaning and Explanation
परिचय: 📖
श्रीमद्भगवद्गीता का यह बारहवाँ अध्याय भक्तियोग पर आधारित है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण सच्ची भक्ति का स्वरूप बताते हैं।
यहाँ स्पष्ट किया गया है कि कौन-सी भक्ति श्रेष्ठ है – साकार या निराकार।
भगवान बताते हैं कि वह भक्त उन्हें सबसे प्रिय है जो समभाव, श्रद्धा, प्रेम और त्याग से भरा होता है।
यह अध्याय प्रत्येक साधक को भक्ति के सही मार्ग की ओर प्रेरित करता है।
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🌼 श्लोक 1
अर्जुन उवाच |
एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते |
ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः ॥1॥
📚 हिंदी अनुवाद:
अर्जुन ने कहा: जो लोग निरन्तर आपके रूप का ध्यान करके भक्ति करते हैं, और जो लोग अव्यक्त, अक्षर (निर्गुण ब्रह्म) की उपासना करते हैं — उन दोनों में से श्रेष्ठ योगी कौन हैं?
🪔 सरल व्याख्या:
अर्जुन यह पूछते हैं कि क्या भगवान के रूप का ध्यान करके भक्ति करना श्रेष्ठ है या उस निराकार, अव्यक्त ब्रह्म की साधना करना? यह अध्याय उसी प्रश्न का उत्तर है।
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🌼 श्लोक 2
श्रीभगवानुवाच |
मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते |
श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः ॥2॥
📚 हिंदी अनुवाद:
भगवान बोले: जो अपने मन को मुझमें लगाकर निरन्तर श्रद्धा से मेरी भक्ति करते हैं, वे मुझे सर्वाधिक प्रिय और श्रेष्ठ योगी हैं।
🪔 सरल व्याख्या:
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो भक्त साकार रूप में मुझ पर ध्यान लगाकर प्रेमपूर्वक भक्ति करते हैं, वे मुझे सर्वश्रेष्ठ लगते हैं।
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🌼 श्लोक 3
ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते।
सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम्॥
📚 हिंदी अनुवाद:
जो लोग अव्यक्त, अक्षर, सर्वत्रव्यापक, अचल, अचिन्त्य और स्थिर ब्रह्म की उपासना करते हैं...
🪔 सरल व्याख्या:
जो भक्त निराकार और अव्यक्त ब्रह्म की उपासना करते हैं, जो हर जगह है, जिसे सोचा नहीं जा सकता, जो सदा स्थिर और अटल है — वे अत्यंत कठिन मार्ग पर चल रहे होते हैं।
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🌼 श्लोक 4
सन्नियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः।
ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः॥
📚 हिंदी अनुवाद:
...और जो इंद्रियों को संयमित करके, समत्वबुद्धि के साथ सब प्राणियों के हित में लगे रहते हैं — वे भी मुझे ही प्राप्त करते हैं।
🪔 सरल व्याख्या:
इन कठिन गुणों को अपनाने वाले भक्त, जो सबके साथ समभाव रखते हैं और इंद्रियों को वश में रखते हैं, अंत में भगवान को ही प्राप्त करते हैं — चाहे मार्ग कठिन हो।
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🌼 श्लोक 5
क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम् |
अव्यक्ता हि गतिर्दुःखं देहवद्भिरवाप्यते ॥5॥
📚 हिंदी अनुवाद:
जो लोग अव्यक्त (निर्गुण ब्रह्म) की उपासना करते हैं, उनके लिए यह मार्ग अत्यन्त कठिन है; देहधारी जीवों के लिए यह मार्ग पीड़ादायक होता है।
🪔 सरल व्याख्या:
भगवान यह स्पष्ट करते हैं कि निर्गुण ब्रह्म की उपासना कठिन है। सामान्य मनुष्य के लिए साकार रूप की भक्ति करना सरल और प्रभावी होता है।
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🌼 श्लोक 6
ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः।
अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते॥
📚 हिंदी अनुवाद:
जो लोग अपने सारे कर्म मुझे अर्पित करके, अनन्य भाव से मेरी उपासना करते हैं...
🪔 सरल व्याख्या:
जो भक्त अपने सभी कर्म भगवान को समर्पित करके एकनिष्ठ भाव से भक्ति करते हैं — वे भगवान को अत्यंत प्रिय हैं।
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🌼 श्लोक 7
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्।
भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्॥
📚 हिंदी अनुवाद:
हे पार्थ! जिनका चित्त मुझमें लगा होता है, उन्हें मैं इस मृत्यु रूपी संसार-सागर से शीघ्र ही उबार लेता हूँ।
🪔 सरल व्याख्या:
ऐसे एकनिष्ठ भक्तों को भगवान स्वयं जन्म-मरण के समुद्र से निकालते हैं और उन्हें अपने चरणों में स्थान देते हैं।
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🌼 श्लोक 8
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय |
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः ॥8॥
📚 हिंदी अनुवाद:
अपना मन मुझमें लगा, अपनी बुद्धि को मुझमें स्थिर कर; तब तू निश्चय ही मेरे में ही वास करेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।
🪔 सरल व्याख्या:
भगवान कहते हैं – यदि तुम अपने मन और बुद्धि को मेरे में लगा दो, तो तुम मेरे स्वरूप में स्थित हो जाओगे। यही पूर्ण भक्ति है।
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🌼 श्लोक 9
अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम् |
अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय ॥9॥
📚 हिंदी अनुवाद:
हे धनञ्जय! यदि तू अपने मन को मुझमें स्थिर करने में असमर्थ है, तो अभ्यासयोग द्वारा मुझे प्राप्त करने का प्रयास कर।
🪔 सरल व्याख्या:
यदि सीधी भक्ति में मन न लगे तो अभ्यास से शुरुआत करो – नियमित ध्यान, स्मरण और सेवा से मन को धीरे-धीरे भगवान में लगाओ।
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🌼 श्लोक 10
अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव |
मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन् सिद्धिमवाप्स्यसि ॥10॥
📚 हिंदी अनुवाद:
यदि तू अभ्यास में भी असमर्थ है, तो मेरे लिए कर्म कर। यदि तू मेरे लिए कार्य करेगा तो सिद्धि को प्राप्त कर लेगा।
🪔 सरल व्याख्या:
भगवान कहते हैं – अगर अभ्यास भी कठिन लगे तो सेवा भाव से कर्म करो। भगवान के लिए कुछ करना भी भक्ति है – जैसे भजन गाना, सेवा करना, दूसरों की मदद करना।
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🌼 श्लोक 11
अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रितः |
सर्वकर्मफलत्यागं ततः कुरु यतात्मवान् ॥11॥
📚 हिंदी अनुवाद:
यदि तू मेरे लिए कर्म करने में भी असमर्थ है, तो फिर समस्त कर्मों के फलों का त्याग कर — आत्मसंयम के साथ।
🪔 सरल व्याख्या:
भगवान कहते हैं – यदि तुम मेरे लिए कर्म नहीं कर सकते, तो कम-से-कम अपने कर्मों के फल का मोह त्याग दो। यही त्याग भी मोक्ष की दिशा में एक पग है।
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🌼 श्लोक 12
श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं विशिष्यते |
ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम् ॥12॥
📚 हिंदी अनुवाद:
अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है, ज्ञान से ध्यान श्रेष्ठ है, ध्यान से कर्मफल-त्याग श्रेष्ठ है — और त्याग से तुरंत शांति प्राप्त होती है।
🪔 सरल व्याख्या:
यह श्लोक एक सीढ़ी की तरह है –
1️⃣ अभ्यास करो →
2️⃣ ज्ञान लो →
3️⃣ ध्यान करो →
4️⃣ फिर कर्मफल का त्याग करो →
📿 तब मिलती है सच्ची शांति।
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🌼 श्लोक 13
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।
निर्ममो निरहंकारः समदुःखसुखः क्षमी॥
📚 हिंदी अनुवाद:
जो किसी से द्वेष नहीं करता, सबके लिए मित्रवत और करुणामय है, ममता और अहंकार से रहित है, और सुख-दुख में सम रहता है — ऐसा भक्त...
🪔 सरल व्याख्या:
भगवान कहते हैं कि सच्चा भक्त वह है जो सबसे प्रेम करता है, किसी से बैर नहीं रखता, नम्र होता है, और हर परिस्थिति को शांति से सहता है।
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🌼 श्लोक 14
संतुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः॥
📚 हिंदी अनुवाद:
जो सदा संतुष्ट रहता है, योग में स्थिर है, मन और इंद्रियों को संयमित करता है, जिसकी बुद्धि मुझमें लगी है — ऐसा भक्त मुझे प्रिय है।
🪔 सरल व्याख्या:
जो हर स्थिति में संतुष्ट रहता है, भगवान में मन-बुद्धि अर्पित कर देता है और साधना में स्थिर है — ऐसा साधक भगवान श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय होता है।
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🌼 श्लोक 15
यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः |
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः ॥15॥
📚 हिंदी अनुवाद:
जो ऐसा है कि जिससे कोई भी प्राणी भयभीत नहीं होता और जो स्वयं भी किसी से विचलित नहीं होता — जो हर्ष, ईर्ष्या, भय और चिंता से मुक्त है — ऐसा भक्त मुझे प्रिय है।
🪔 सरल व्याख्या:
जो शांत, सौम्य और सबके लिए शुभ हो — जो खुद भी दूसरों से विचलित नहीं होता और न ही किसी को परेशान करता है — ऐसा व्यक्ति भगवान का सच्चा भक्त होता है।
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🌼 श्लोक 16
अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः |
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः ॥16॥
📚 हिंदी अनुवाद:
जो किसी से अपेक्षा नहीं करता, शुद्ध और दक्ष है, उदासीन है, चिंता से रहित है और कर्मों के आरंभ में भी आसक्त नहीं होता — वह भक्त मुझे प्रिय है।
🪔 सरल व्याख्या:
भगवान को वही भक्त प्रिय है जो कर्म तो करता है, पर फल की आसक्ति नहीं रखता। वह निर्मल, संतुलित और निष्काम होता है।
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🌼 श्लोक 17
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति |
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः ॥17॥
📚 हिंदी अनुवाद:
जो न तो हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है और न कामना करता है – शुभ-अशुभ का त्याग करने वाला भक्त मुझे प्रिय है।
🪔 सरल व्याख्या:
भगवान कहते हैं – जो जीवन में स्थिर रहता है, न सुख में उछलता है, न दुख में टूटता है, जो निष्काम भाव से कर्म करता है – वही भक्त मुझे प्रिय है।
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🌼 श्लोक 18
समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः |
शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः ॥18॥
📚 हिंदी अनुवाद:
जो शत्रु-मित्र, मान-अपमान, ठंड-गर्मी, सुख-दुख – सब में समभाव रखता है और आसक्ति से रहित रहता है।
🪔 सरल व्याख्या:
भगवान कहते हैं कि जो भक्त हर परिस्थिति में समभाव बनाए रखता है – न किसी को विशेष मानता है, न किसी से घृणा करता है, मान-अपमान में भी शांत रहता है – वह भक्त सच्चा है।
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🌼 श्लोक 19
तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येन केनचित् |
अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः ॥19॥
📚 हिंदी अनुवाद:
जो निन्दा-स्तुति में समान रहता है, मौन है, किसी भी स्थिति में संतुष्ट रहता है, जिसका कोई अपना घर नहीं (वैराग्य भाव) और जिसकी बुद्धि स्थिर है — ऐसा भक्त मुझे प्रिय है।
🪔 सरल व्याख्या:
ऐसा भक्त जो प्रशंसा या निंदा में विचलित नहीं होता, अधिक बोलता नहीं, हर परिस्थिति में संतोष पाता है, भौतिक मोह से मुक्त है और उसकी बुद्धि भगवान में स्थिर है – वह भक्त भगवान को अत्यंत प्रिय है।
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🌼 श्लोक 20
ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते |
श्रद्धधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः ॥20॥
📚 हिंदी अनुवाद:
जो भक्त इस अध्याय में वर्णित अमृतमय धर्म का श्रद्धा से पालन करते हैं, वे मुझमें परम प्रेम रखने वाले हैं और मुझे अत्यंत प्रिय हैं।
🪔 सरल व्याख्या:
अंत में भगवान कहते हैं – जो भी भक्त इन सभी बातों को जीवन में अपनाता है, श्रद्धा और निष्ठा से उनका पालन करता है – वह मुझे बहुत, बहुत प्रिय है।
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✨ अध्याय 12 (भक्तियोग) का सार:
➡️ सच्ची भक्ति = निःस्वार्थ प्रेम + समभाव + त्याग + सेवा + श्रद्धा
➡️ यह अध्याय बताता है कि चाहे साधक किसी भी स्तर पर हो, भगवान तक पहुँचने के लिए रास्ता हमेशा खुला है।
➡️ भगवान को वही प्रिय है जो दूसरों का भला चाहता है, क्रोध-द्वेष से मुक्त है, और हर परिस्थिति में शांत और समर्पित रहता है।
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