भगवान श्रीकृष्ण का विराट रूप | श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 – विश्वरूपदर्शन योग
भगवान श्रीकृष्ण का विराट रूप | श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 – विश्वरूपदर्शन योग
📘 श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 11
🕉️ विश्वरूपदर्शन योग
(भगवान श्रीकृष्ण का विराट रूप दर्शन)
🌈 परिचय: 📜
🔱 भगवान का वो रूप जिसे देख अर्जुन तक काँप गया,
🌌 हर दिशा में थी अग्नि, सूर्य और काल का संहारक प्रभाव!
🕉️ श्रीकृष्ण ने दिखाया विराट ब्रह्मांडीय स्वरूप,
🙏 और सिखाया – केवल अनन्य भक्ति से ही होती है प्रभु की प्राप्ति।
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🔹 श्लोक 1
🕉️ मदनुग्रहमायं हि परं मंत्रमद्भुतं वचः।
मम मेघमिदं ब्रह्म यं त्वया कथितं विभो॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे प्रभु! आपने मुझ पर जो कृपा की है, उसके फलस्वरूप आपने जो यह अद्भुत ब्रह्म तत्व बताया है, वह मेरे अज्ञान को मिटाने वाला है।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन कहता है – हे श्रीकृष्ण! आपने मुझे जो दिव्य ज्ञान दिया, उससे मेरा मोह समाप्त हो गया है।
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🔹 श्लोक 2
🕉️ भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया।
त्वत्तः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे कमल-नयन! आपने सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय के रहस्य को विस्तारपूर्वक बताया है और अपने अविनाशी स्वरूप का भी वर्णन किया है।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन कहता है कि मैंने आपके मुख से सृष्टि के आरंभ और अंत का ज्ञान प्राप्त किया, साथ ही आपका महान स्वरूप भी जाना।
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🔹 श्लोक 3
🕉️ एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर।
द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे परमेश्वर! आपने जो कहा, वह सत्य है। अब मैं आपके उस ऐश्वर्ययुक्त विराट रूप को देखना चाहता हूँ।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन भगवान से अनुरोध करता है कि मुझे आपका वह दिव्य विराट रूप साक्षात देखने की इच्छा है।
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🔹 श्लोक 4
🕉️ मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो।
योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे प्रभु! यदि आप मुझे उस रूप को देखने योग्य मानते हों, तो कृपया मुझे वह अविनाशी रूप दिखाइए।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन विनती करता है कि अगर मैं योग्य हूँ, तो कृपया मुझे अपनी दिव्यता का अनुभव कराइए।
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🔹 श्लोक 5
🕉️ पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः।
नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे पार्थ! मेरे सैकड़ों, हजारों दिव्य रूपों को देखो – जो विविध रंगों और आकारों से युक्त हैं।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान कहते हैं – हे अर्जुन! अब तुम मेरे अनेक रंग-बिरंगे, सुंदर और अद्भुत रूपों का दर्शन करो।
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🔹 श्लोक 6
🕉️ पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा।
बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे भारत! तुम आदित्य, वसु, रुद्र, अश्विनीकुमार और मरुतगणों को देखो – साथ ही अनेक अद्भुत दृश्य भी जो तुमने पहले कभी नहीं देखे।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान अर्जुन को दिव्य लोक और देवताओं का दर्शन कराने जा रहे हैं, जो अब तक मनुष्य ने नहीं देखा।
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🔹 श्लोक 7
🕉️ इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे गुडाकेश! इस एक ही शरीर में समस्त चराचर जगत और वह सब भी देखो, जो तुम देखना चाहते हो।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान कहते हैं – हे अर्जुन! मेरे एक ही शरीर में यह संपूर्ण ब्रह्मांड समाया हुआ है। देखो और अनुभव करो।
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🔹 श्लोक 8
🕉️ न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा।
दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
तुम मुझे इन सामान्य नेत्रों से नहीं देख सकते। इसलिए मैं तुम्हें दिव्य दृष्टि देता हूँ, जिससे तुम मेरे योग ऐश्वर्य को देख सको।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं क्योंकि उनका विराट रूप सामान्य आंखों से देखा नहीं जा सकता।
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🔹 श्लोक 9
🕉️ संजय उवाच —
एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरिः।
दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
संजय बोले – हे राजा धृतराष्ट्र! इसके बाद महायोगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना परम ऐश्वर्ययुक्त रूप दिखाया।
🪷 सरल व्याख्या:
धृतराष्ट्र के दरबार में बैठे संजय वर्णन करते हैं कि भगवान ने अपना विराट स्वरूप प्रकट किया।
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🔹 श्लोक 10
🕉️ अनेकवक्त्रनयनं अनेकाद्भुतदर्शनम्।
अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकायुधं शुभम्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
भगवान का वह रूप अनेक मुखों और नेत्रों से युक्त, अनेक अद्भुत दर्शनों से युक्त, दिव्य आभूषणों और अनेक दिव्य अस्त्रों से सुसज्जित था।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान श्रीकृष्ण का विराट रूप हजारों सिर, आंखों, दिव्य आभूषणों और दिव्य शस्त्रों से सजा हुआ था – जो अत्यंत दिव्य और चमत्कारिक लग रहा था।
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🔹 श्लोक 11
🕉️ दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्।
सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
भगवान ने दिव्य पुष्पमालाएँ, दिव्य वस्त्र और दिव्य गंध का लेप धारण किया था। वे सम्पूर्ण रूप से आश्चर्य से भरपूर, अनंत और सर्वदिशाओं में मुखों वाले थे।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान का विराट रूप एक दिव्य शोभा से युक्त था, जिसमें असंख्य चेहरे, अलौकिक गंध, वस्त्र और गहने थे – हर दिशा में भगवान ही भगवान दिख रहे थे।
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🔹 श्लोक 12
🕉️ दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः॥
📖 हिंदी अनुवाद:
यदि आकाश में एक साथ हजारों सूर्यों का प्रकाश फैल जाए, तो भी वह उस महान आत्मा के तेज के समान नहीं होगा।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान श्रीकृष्ण के विराट रूप का तेज हजारों सूर्यों से भी अधिक चमकीला था – जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
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🔹 श्लोक 13
🕉️ तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा।
अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा॥
📖 हिंदी अनुवाद:
उस समय अर्जुन ने भगवान के शरीर में एक साथ पूरे जगत को विविध रूपों में विभक्त देखा।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन को भगवान के विराट शरीर में संपूर्ण ब्रह्मांड एक साथ दिखा – चर, अचर, जीव, देवता, सब कुछ।
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🔹 श्लोक 14
🕉️ ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनंजयः।
प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत॥
📖 हिंदी अनुवाद:
तब धनंजय अर्जुन विस्मय में पड़ गए, रोमांचित हो उठे। सिर झुकाकर उन्होंने भगवान को प्रणाम किया और हाथ जोड़कर बोले।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान के विराट रूप को देखकर अर्जुन रोमांच से भर गए, श्रद्धा से झुककर उन्होंने श्रीकृष्ण की स्तुति प्रारंभ की।
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🔹 श्लोक 15
🕉️ पश्यामि देवांस्तव देव देहे
सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान्।
ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थं
ऋषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे देव! मैं आपके शरीर में सभी देवताओं, विभिन्न प्रकार के प्राणियों, ब्रह्माजी को कमलासन पर बैठे हुए, सभी ऋषियों और दिव्य नागों को देख रहा हूँ।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन को भगवान के विराट शरीर में ब्रह्मा जी, ऋषि-मुनि, देवता, नाग, सब दिख रहे थे – मानो सम्पूर्ण सृष्टि उस एक स्वरूप में समाई हो।
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🔹 श्लोक 16
🕉️ अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं
पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्।
नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं
पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे विश्वरूप! मैं आपको चारों ओर से अनेक हाथों, पेटों, मुखों और नेत्रों से युक्त अनंत रूप में देख रहा हूँ। मुझे न आपका अंत दिखता है, न मध्य और न आरंभ।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान का रूप इतना विशाल था कि अर्जुन को उसकी कोई सीमा नहीं दिखी – न शुरुआत, न मध्य, न अंत।
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🔹 श्लोक 17
🕉️ किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च
तेजोराशिं सर्वतो दीप्तिमन्तम्।
पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ताद्
दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
मैं आपको किरीट, गदा और चक्रधारी रूप में देख रहा हूँ। आप चारों ओर से प्रकाशमान हैं। आपकी तेजस्विता अग्नि और सूर्य के प्रकाश से भी अधिक है, जिसे देख पाना कठिन है।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन को भगवान का स्वरूप अग्नि और सूर्य की तरह चमकता हुआ, शस्त्रों से सुसज्जित और अत्यंत दिव्य दिखाई दिया।
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🔹 श्लोक 18
🕉️ त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं
त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता
सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे॥
📖 हिंदी अनुवाद:
आप अक्षर (अविनाशी), परम जानने योग्य तत्व हैं। आप ही इस सम्पूर्ण विश्व के आधार हैं। आप अविनाशी, सनातन धर्म के रक्षक और सनातन पुरुष हैं – ऐसा मेरा विश्वास है।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन कहता है – हे प्रभु! आप ही सृष्टि का मूल हैं, सनातन धर्म के आधार हैं, और सर्वोच्च परमात्मा हैं।
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🔹 श्लोक 19
🕉️ अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्यं
अनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम्।
पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रं
स्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
आपका न आदि है, न मध्य और न अंत। आप अनंत शक्ति से युक्त, अनंत भुजाओं वाले, चंद्र-सूर्य नेत्रों से युक्त और अग्निस्वरूप मुख वाले हैं। अपने तेज से सम्पूर्ण ब्रह्मांड को तपाते हैं।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान के स्वरूप में कोई सीमा नहीं थी – वे ऊर्जा और प्रकाश से परिपूर्ण थे और सारा ब्रह्मांड उनसे दीप्त था।
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🔹 श्लोक 20
🕉️ द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि
व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः।
दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदं
लोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे महात्मा! आप अकेले ही आकाश और पृथ्वी के बीच की सम्पूर्ण दूरी तथा सभी दिशाओं को व्याप्त किए हुए हैं। आपके इस अद्भुत और भयानक रूप को देखकर तीनों लोक कांप रहे हैं।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान का विराट रूप इतना प्रभावशाली था कि संपूर्ण ब्रह्मांड – स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल – सभी में भय और आश्चर्य का भाव उत्पन्न हो गया।
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🔹 श्लोक 21
🕉️ अमी हि त्वां सुरसङ्घा विशन्ति
केचिद्भीताः प्राञ्जलयो गृणन्ति।
स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्घाः
स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः॥
📖 हिंदी अनुवाद:
देवताओं के समूह आपके स्वरूप में प्रवेश कर रहे हैं। कुछ भयभीत होकर हाथ जोड़कर आपकी स्तुति कर रहे हैं। ऋषि और सिद्धजन 'स्वस्ति' कहकर आपको सुंदर स्तुतियों से स्तुति कर रहे हैं।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान के विराट रूप को देख कर देवता और ऋषि भी चकित हो जाते हैं – कुछ भयभीत हैं, कुछ भक्ति में लीन होकर प्रार्थना कर रहे हैं।
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🔹 श्लोक 22
🕉️ रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या
विश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च।
गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसङ्घा
वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे॥
📖 हिंदी अनुवाद:
रुद्र, आदित्य, वसु, साध्य, विश्वेदेव, अश्विनीकुमार, मरुत, पितर, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, और सिद्ध सभी विस्मय में पड़कर आपको देख रहे हैं।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान के विराट रूप को देखकर हर प्रकार के दिव्य और अलौकिक जीव आश्चर्यचकित हैं – किसी को समझ ही नहीं आ रहा कि यह कौन-सी दिव्यता है।
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🔹 श्लोक 23
🕉️ रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रं
महाबाहो बहुबाहूरुपादम्।
बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालं
दृष्ट्वा लोकाः प्रव्यथितास्तथाहम्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे महाबाहो! आपके अनेक मुखों, नेत्रों, भुजाओं, जंघाओं, पैरों, पेटों और भयानक दाढ़ों वाले विशाल रूप को देखकर समस्त लोक भयभीत हैं, और मैं भी भयभीत हूँ।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन कहता है – हे प्रभु! आपका यह भयानक और विशाल रूप देखकर मैं कांप रहा हूँ, और तीनों लोकों में भय का वातावरण छा गया है।
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🔹 श्लोक 24
🕉️ नभःस्पृशं दीप्तमनेकवर्णं
व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम्।
दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा
धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे विष्णु! आपके आकाश को छूने वाले, उज्ज्वल, अनेक रंगों से युक्त, विशाल नेत्रों और बड़े-बड़े खुले मुखों वाले स्वरूप को देखकर मेरा मन अत्यंत भयभीत हो गया है। मुझे शांति नहीं मिल रही।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान का रूप अब केवल दिव्य नहीं, भयावह और विस्मयकारी भी है – अर्जुन खुद को संभाल नहीं पा रहा।
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🔹 श्लोक 25
🕉️ दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि
दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि।
दिशो न जाने न लभे च शर्म
प्रसीद देवेश जगन्निवास॥
📖 हिंदी अनुवाद:
आपके भयानक दाढ़ों वाले मुखों को जो कालाग्नि के समान प्रतीत होते हैं, देखकर मैं दिशाओं को नहीं पहचान पा रहा हूँ। कृपा करिए हे जगत के स्वामी!
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन कहता है – हे प्रभु! आपके भयावह रूप ने मेरी चेतना को हिला दिया है। मुझे समझ नहीं आ रहा मैं कहां हूँ, कृपा कीजिए।
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🔹 श्लोक 26–27
🕉️ अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः
सर्वे सहैवावनिपालसङ्घैः।
भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथासौ
सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः॥
वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति
दंष्ट्राकरालानि भयानकानि।
केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु
सन्दृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गैः॥
📖 हिंदी अनुवाद:
धृतराष्ट्र के पुत्र, राजा लोग, भीष्म, द्रोण, कर्ण और हमारे पक्ष के योद्धा भी आपके भयानक दाढ़ों वाले मुखों में दौड़ते हुए प्रवेश कर रहे हैं। कुछ उनके सिर आपके दांतों में कुचले हुए दिखाई दे रहे हैं।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन देखता है कि युद्ध के महान योद्धा भगवान के विराट रूप में काल के मुख की ओर जा रहे हैं – मृत्यु उनकी ओर बढ़ रही है।
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🔹 श्लोक 28
🕉️ यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः
समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति।
तथा तवामी नरलोकवीरा
विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति॥
📖 हिंदी अनुवाद:
जैसे नदियों का वेग समुद्र की ओर दौड़ता है, वैसे ही ये नरवीर भी आपके अग्नि-ज्वाला से युक्त मुखों में प्रवेश कर रहे हैं।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान के विराट रूप के मुख में वीर योद्धा ऐसे जा रहे हैं जैसे नदियाँ स्वाभाविक रूप से समुद्र में गिरती हैं – ये कालचक्र की स्वाभाविक प्रक्रिया है।
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🔹 श्लोक 29
🕉️ यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा
विसन्ति नाशाय समृद्धवेगाः।
तथैव नाशाय विषन्ति लोकाः
तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः॥
📖 हिंदी अनुवाद:
जैसे पतंगे अग्नि की ओर आकर्षित होकर नाश को प्राप्त होते हैं, वैसे ही ये लोक आपके मुखों में विनाश के लिए तीव्र गति से प्रवेश कर रहे हैं।
🪷 सरल व्याख्या:
यह दर्शाता है कि मृत्यु से कोई नहीं बच सकता। समय और भाग्य सबको उसी ओर खींच कर ले जाते हैं – भगवान विराट काल हैं।
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🔹 श्लोक 30
🕉️ लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ताल्-
लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः।
तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं
भासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो॥
📖 हिंदी अनुवाद:
आप अपने अग्नि-ज्वाला से युक्त मुखों द्वारा चारों ओर से सब लोकों को निगल रहे हैं। आपका उग्र प्रकाश पूरे जगत को जला रहा है।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान का विराट रूप अब संहारक रूप में है। वो केवल सृष्टा नहीं हैं – वे समय आने पर विनाश भी करते हैं।
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🔹 श्लोक 31
🕉️ आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो
नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद।
विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं
न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे उग्र रूप वाले देव! आप कौन हैं? कृपया बताइए। आपको मेरा नमस्कार है, कृपा कीजिए। मैं आपके आदि रूप को जानना चाहता हूँ क्योंकि मैं आपके उद्देश्य को नहीं समझ पा रहा हूँ।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन भगवान से विनती करता है — “आप कौन हैं इस उग्र रूप में? कृपा करके बताइए, मैं घबरा गया हूँ।”
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🔹 श्लोक 32
🕉️ श्रीभगवानुवाच –
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे
येऽवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधाः॥
📖 हिंदी अनुवाद:
भगवान बोले – मैं काल हूँ, लोकों का नाश करने के लिए आया हूँ। इन विरोधी योद्धाओं का विनाश तय है, चाहे तू युद्ध करे या न करे।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान स्वयं को "काल" कहते हैं — जो नाश करता है, और यह नाश होना ही है। अर्जुन केवल एक माध्यम है।
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🔹 श्लोक 33
🕉️ तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व
जित्वा शत्रून्भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्।
मयैवैते निहता: पूर्वमेव
निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
इसलिए उठो, अर्जुन! विजय और यश प्राप्त करो। ये शत्रु पहले ही मुझसे मारे जा चुके हैं। तू तो केवल एक निमित्त बन जा।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान अर्जुन से कहते हैं — युद्ध करो, लेकिन याद रखो, तुम केवल माध्यम हो, सब कुछ मेरी योजना के अनुसार हो रहा है।
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🔹 श्लोक 34
🕉️ द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च
कर्णं तथान्यानपि योधवीरान्।
मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा
युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
भीष्म, द्रोण, जयद्रथ और कर्ण – ये सब पहले ही मारे जा चुके हैं। तू इनको युद्ध में मारने वाला बन, डर मत। विजय तेरा ही होगा।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान अर्जुन को साहस देते हैं – तू युद्ध कर, डर मत। मैंने सब तय कर दिया है।
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🔹 श्लोक 35
🕉️ सञ्जय उवाच –
एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य
कृताञ्जलिर्वेपमानः किरीटी।
नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं
सगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य॥
📖 हिंदी अनुवाद:
संजय कहते हैं – केशव (भगवान श्रीकृष्ण) के ये वचन सुनकर अर्जुन कांपते हुए, हाथ जोड़कर, बार-बार प्रणाम करता है और भयभीत होकर थरथर काँपते हुए बोलता है।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान के वचनों और विराट रूप से अर्जुन पूरी तरह विनम्र और भयभीत हो गया है, अब वह गहराई से समझने लगा है।
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🔹 श्लोक 36
🕉️ अर्जुन उवाच –
स्थितोऽस्मि तव प्रभव्यात्यभीष्टं
विनायकं विश्वमिदं त्वया यत्।
भूतादिनं तं प्रलयं च जानन्
बुद्धिं न शक्यां महतीं वदन्ति॥
📖 हिंदी अनुवाद:
अर्जुन कहता है – हे प्रभु! आप जो कुछ भी हैं, यह सम्पूर्ण विश्व आपकी ही प्रेरणा से संचालित हो रहा है। आप ही सृष्टि, स्थिति और प्रलय के मूल कारण हैं। आपकी महिमा को कोई समझ नहीं सकता।
🪷 सरल व्याख्या:
अब अर्जुन पूरी तरह स्वीकार करता है कि भगवान ही सब कुछ हैं — उनका रूप और कार्य मनुष्य की बुद्धि से परे है।
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🔹 श्लोक 37
🕉️ कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन्
गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे।
अनन्त देवेश जगन्निवास
त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे महात्मा! ब्रह्मा के भी आदि कारण, अनंत, देवों के देव, और सम्पूर्ण जगत के आश्रयस्वरूप आप को कौन न नमस्कार करेगा?
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन कहता है – जो सबके आदिकर्ता हैं, उन्हें नमस्कार तो देवता भी करते हैं। आप अनंत और अक्षर हैं – नाश रहित।
🍁🌺🍁
🔹 श्लोक 38
🕉️ त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणः
त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम
त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥
📖 हिंदी अनुवाद:
आप आदि देव, सनातन पुरुष, इस सम्पूर्ण विश्व के अंतिम आश्रय हैं। आप जानने योग्य और जानने वाले हैं, और आपकी अनंत रूप में यह सृष्टि व्याप्त है।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान ही सत्य, ज्ञान और आश्रय हैं। सब कुछ उन्हीं से उत्पन्न होता है और उन्हीं में विलीन होता है।
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🔹 श्लोक 39
🕉️ वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः
प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः
पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥
📖 हिंदी अनुवाद:
आप ही वायु हैं, यम हैं, अग्नि हैं, वरुण हैं, चन्द्रमा हैं, प्रजापति और पितामह भी आप ही हैं। आपको बार-बार प्रणाम है – सहस्रों बार नमस्कार!
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान के हर रूप और हर शक्ति को प्रणाम करते हुए अर्जुन बार-बार झुकता है – यह शुद्ध भक्ति और समर्पण की अवस्था है।
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🔹 श्लोक 40
🕉️ नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते
नमोऽस्तु ते सर्वतः एव सर्व।
अनन्तवीर्यमितविक्रमस्त्वं
सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥
📖 हिंदी अनुवाद:
आपको आगे से, पीछे से और चारों दिशाओं से नमस्कार है। आप असीम बल वाले हैं, अनंत पराक्रमी हैं, आप सबको व्याप्त करते हैं, इसलिए आप ही सब कुछ हैं।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान हर दिशा में, हर कण में, हर शक्ति में उपस्थित हैं – इसलिए अर्जुन उन्हें हर ओर से प्रणाम करता है।
🍁🌺🍁
🔹 श्लोक 41
🕉️ सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं
हे कृष्ण हे यादव हे सखेति।
अजानता महिमानं तवेदं
मया प्रमादात्प्रणयेन वापि॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे प्रभु! आपको ‘हे कृष्ण’, ‘हे यादव’, ‘हे सखा’ समझकर मैंने अनजाने में या प्रेमवश मजाक में जो भी कहा, उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूँ।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन अब महसूस करता है कि उसने भगवान को केवल मित्र मानकर कई बार हल्के में लिया – अब वह शुद्ध विनम्रता से क्षमा मांग रहा है।
🍁🌺🍁
🔹 श्लोक 42
🕉️ यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि
विहारशय्यासनभोजनेषु।
एकोऽथवाप्यच्छुततत्समक्षं
तत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
जिन-जिन अवसरों पर मैंने भोजन, शयन, या अन्य विहार में आपकी उपेक्षा की, चाहे अकेले में या दूसरों के सामने – उन सबका मुझे पछतावा है। हे अचिन्त्य प्रभु, मुझे क्षमा करें।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन अब महसूस करता है कि हर क्षण भगवान के साथ का था – और उस दौरान किए गए किसी भी अपमान के लिए वह क्षमायाचना करता है।
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🔹 श्लोक 43
🕉️ पितासि लोकस्य चराचरस्य
त्वमस्य पूज्यश्च गुरुः गरीयान्।
न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्यो
लोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव।।
📖 हिंदी अनुवाद:
आप इस चर-अचर जगत के पिता हैं, सबसे पूज्य हैं, और सबसे महान गुरु हैं। तीनों लोकों में आप जैसा कोई नहीं है।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान की महिमा का कोई अंत नहीं है – वे ही सबके जन्मदाता, मार्गदर्शक और परम आदर्श हैं।
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🔹 श्लोक 44
🕉️ तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं
प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्।
पितेव पुत्रस्य सखेव सख्यु:
प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
इसलिए मैं आपको नमस्कार करता हूँ और शरीर झुकाकर क्षमा माँगता हूँ। जैसे पिता पुत्र की, सखा सखा की, और प्रिय प्रिय की गलतियाँ सहन करता है, वैसे ही आप भी मेरी भूलों को क्षमा करें।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन की भाषा अब शुद्ध समर्पण और आत्मा की पुकार बन चुकी है – वह भगवान से प्रेम और श्रद्धा से क्षमा माँगता है।
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🔹 श्लोक 45
🕉️ अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा
भयेन च प्रव्यथितं मनो मे।
तदेव मे दर्शय देवरूपं
प्रसीद देवेश जगन्निवास॥
📖 हिंदी अनुवाद:
मैं आपका पहले कभी न देखा हुआ विराट रूप देखकर आनन्दित भी हूँ और भयभीत भी। अब कृपा करके मुझे फिर से अपना शांत देवस्वरूप दिखाइए।
🪷 सरल व्याख्या:
विराट रूप देखना अद्भुत था, लेकिन अर्जुन अब भगवान के शांत, सुलभ रूप को पुनः देखना चाहता है।
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🔹 श्लोक 46
🕉️ किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तं
इच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव।
तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन
सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे सहस्रबाहु! मैं आपको फिर से उसी चतुर्भुज रूप में देखना चाहता हूँ – सिर पर मुकुट, हाथ में गदा और चक्र सहित।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन अब चतुर्भुज विष्णु रूप की मांग करता है – जो शांत, मधुर और भक्तों को प्रिय है।
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🔹 श्लोक 47
🕉️ श्रीभगवानुवाच –
मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदं
रूपं परं दर्शितमात्मयोगात्।
तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यं
यन्मे त्वदन्येन न दृष्टपूर्वम्॥
📖 हिंदी अनुवाद:
भगवान बोले – हे अर्जुन! मैंने प्रसन्न होकर अपने योगबल से यह परम तेजोमय, अनंत और आदि रूप तुम्हें दिखाया है, जिसे तुमसे पहले किसी ने नहीं देखा।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान कहते हैं – ये रूप सिर्फ तुम्हें विशेष कृपा से दिखाया गया है, यह दुर्लभ है।
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🔹 श्लोक 48
🕉️ न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानैः
न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रैः।
एवंरूपः शक्य अहं नृलोके
द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे कुरुश्रेष्ठ! न वेदपाठ, न यज्ञ, न दान, न कठिन तप – किसी से भी यह रूप देखा नहीं जा सकता, सिवाय तुम्हारे।
🪷 सरल व्याख्या:
यह विराट रूप कठिन साधनाओं से भी नहीं देखा जा सकता – केवल भगवान की कृपा से।
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🔹 श्लोक 49
🕉️ मा ते व्यथा मा च विमूढभावो
दृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्ममेदम्।
व्यपेतभीः प्रीतमना: पुनस्त्वं
तदेव मे रूपमिदं प्रपश्य॥
📖 हिंदी अनुवाद:
डर मत, घबराओ मत। मेरे इस उग्र रूप को देखकर विचलित मत हो। अब प्रसन्न चित्त होकर मेरा वही चतुर्भुज रूप देखो।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान अर्जुन को शांत करने के लिए अपना कृपालु रूप दिखाते हैं।
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🔹 श्लोक 50
🕉️ सञ्जय उवाच –
इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा
स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः।
आश्वासयामास च भीतमेनं
भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा॥
📖 हिंदी अनुवाद:
संजय बोले – ऐसा कहकर वासुदेव ने फिर से अपना सौम्य रूप दिखाया और भयभीत अर्जुन को सांत्वना दी।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान अब अपने मधुर, शांत स्वरूप में आ जाते हैं – जिससे अर्जुन का भय मिट जाता है।
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🔹 श्लोक 51
🕉️ अर्जुन उवाच –
दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं
तव सौम्यं जनार्दन।
इदानीमस्मि संवृत्तः
सचेताः प्रकृतिं गतः॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे जनार्दन! आपका यह मानव स्वरूप देखकर अब मेरा मन शांत हो गया है और मैं अपनी सामान्य अवस्था में आ गया हूँ।
🪷 सरल व्याख्या:
अर्जुन अब शांति और संतुलन की स्थिति में लौट आया है।
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🔹 श्लोक 52
🕉️ श्रीभगवानुवाच –
सुदुर्दर्शमिदं रूपं
दृष्टवानसि यन्मम।
देवा अप्यस्य रूपस्य
नित्यं दर्शनकाङ्क्षिणः॥
📖 हिंदी अनुवाद:
भगवान बोले – जो रूप तुमने देखा वह बहुत दुर्लभ है। देवता भी इस रूप को देखने के लिए सदा लालायित रहते हैं।
🪷 सरल व्याख्या:
यह रूप स्वर्गिक देवताओं के लिए भी अत्यंत दुर्लभ है – ये अर्जुन की महानता और भगवान की कृपा का प्रतीक है।
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🔹 श्लोक 53
🕉️ नाहं वेदैर्न तपसा
न दानेन न चेज्यया।
शक्य एवंविधो द्रष्टुं
दृष्टवानसि मां यथा॥
📖 हिंदी अनुवाद:
न वेदों से, न तप से, न दान से, न यज्ञ से – ऐसा रूप देखना संभव है जैसा तुमने देखा।
🪷 सरल व्याख्या:
भगवान फिर दोहराते हैं – कृपा ही मार्ग है, केवल ज्ञान या कर्म से यह रूप नहीं दिखता।
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🔹 श्लोक 54
🕉️ भक्त्या त्वनन्यया शक्य
अहमेवंविधोऽर्जुन।
ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्त्वेन
प्रवेष्टुं च परंतप॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे अर्जुन! केवल अनन्य भक्ति से ही मुझे इस रूप में जाना, देखा और पाया जा सकता है।
🪷 सरल व्याख्या:
👉 अनन्य भक्ति ही परम मार्ग है!
भगवान कहते हैं – जो भक्ति में लीन है, वही मुझमें प्रवेश कर सकता है।
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🔹 श्लोक 55
🕉️ मत्कर्मकृन्मत्परमो
मद्भक्तः सङ्गवर्जितः।
निर्वैरः सर्वभूतेषु
यः स मामेति पाण्डव॥
📖 हिंदी अनुवाद:
हे पाण्डव! जो मेरे लिए कर्म करता है, मुझे ही सर्वोच्च मानता है, जो मुझसे प्रेम करता है, संगरहित है और सब प्राणियों से द्वेष रहित है – वही मुझे प्राप्त करता है।
🪷 सरल व्याख्या:
सच्चा भक्त वह है –
👉 जो भगवान के लिए कर्म करे
👉 ममता और द्वेष छोड़ दे
👉 और बस प्रेम से भक्ति करे –
ऐसा भक्त अंततः भगवान को प्राप्त करता है।
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🪷 अध्याय 11 का सारांश
🔹 अर्जुन ने भगवान का विराट रूप देखा – जो अद्भुत, भयावह और दिव्य था।
🔹 यह अनुभव उसके भीतर पूर्ण समर्पण और भक्ति का जन्म देता है।
🔹 भगवान ने बताया कि अनन्य भक्ति ही उन्हें प्राप्त करने का मार्ग है।
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