श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 – श्लोक 21 से 30 | आत्मा की अमरता और शाश्वत ज्ञान
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 – श्लोक 21 से 30 | आत्मा की अमरता और शाश्वत ज्ञान
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 – श्लोक 21 से 30 | आत्मा की अमरता का रहस्य
परिचय:
इस भाग में श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा के शाश्वत और अविनाशी स्वरूप को समझाते हैं। वे बताते हैं कि आत्मा न कभी जन्म लेती है, न मरती है और न ही किसी अस्त्र या अग्नि से नष्ट की जा सकती है।
श्लोक 21 से 30 आत्मज्ञान के उच्चतम सत्य को दर्शाते हैं और कर्म के प्रति निरंतरता की प्रेरणा देते हैं।
यह श्रृंखला हर seeker के लिए बेहद उपयोगी है जो जीवन और मृत्यु के रहस्य को समझना चाहता है।
आइए पढ़ते हैं भगवद्गीता के इन दिव्य श्लोकों को हिंदी भावार्थ और व्याख्या सहित।
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श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 2 (सांख्य योग)
श्लोक 21 से 30
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श्लोक.21
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्।
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्॥
हिंदी अनुवाद:
जो इस आत्मा को अविनाशी, नित्य, अजन्मा और अव्यय (न बदलने वाला) जानता है, हे पार्थ! वह पुरुष किसको मारता है और किसको मरवाता है?
सरल व्याख्या:
जिसे आत्मा की अमरता का ज्ञान हो जाता है, उसके लिए हिंसा या मृत्यु का कोई अस्तित्व नहीं रहता। वह कर्म करता है पर आसक्ति नहीं रखता।
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श्लोक.22
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही॥
हिंदी अनुवाद:
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को छोड़कर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण करती है।
सरल व्याख्या:
शरीर नाशवान है पर आत्मा शाश्वत है। शरीर बदलते हैं जैसे कपड़े, आत्मा तो अजर-अमर है।
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श्लोक.23
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥
हिंदी अनुवाद:
इस आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न अग्नि जला सकती है, न जल गीला कर सकता है, और न ही वायु सुखा सकती है।
सरल व्याख्या:
आत्मा पर कोई भौतिक चीज़ असर नहीं डाल सकती। वह तत्वों से परे है।
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श्लोक.24
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः॥
हिंदी अनुवाद:
यह आत्मा अविनाशी, अग्नि से न जलने वाली, जल से न भीगने वाली, वायु से न सुखने वाली, नित्य, सर्वव्यापी, अचल और सनातन है।
सरल व्याख्या:
आत्मा सदा स्थिर है, उसे कोई गति या विकृति नहीं होती। वह साक्षी भाव में स्थित रहती है।
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श्लोक.25
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि॥
हिंदी अनुवाद:
यह आत्मा अव्यक्त (इंद्रियों से न पकड़ने योग्य), अचिंत्य (बुद्धि से न जानने योग्य) और अविकार्य (परिवर्तन रहित) कही गई है। अतः ऐसे आत्मा के लिए शोक करना उचित नहीं।
सरल व्याख्या:
श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्मा पर शोक करना अज्ञानता है, क्योंकि वह दृश्य और सोच से परे है।
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श्लोक.26
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्।
तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि॥
हिंदी अनुवाद:
यदि तू आत्मा को बार-बार जन्म लेने वाला या सदा मरने वाला भी मानता है, तब भी तेरे लिए शोक करना अनुचित है।
सरल व्याख्या:
भले ही कोई पुनर्जन्म में विश्वास न करे, फिर भी मृत्यु स्वाभाविक है – उस पर शोक नहीं करना चाहिए।
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श्लोक.27
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि॥
हिंदी अनुवाद:
जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित है और जो मरता है उसका पुनर्जन्म भी निश्चित है। इसलिए अपरिहार्य के लिए शोक मत कर।
सरल व्याख्या:
जीवन-मृत्यु का यह चक्र अटल है। इस सच्चाई को जानकर दुख नहीं करना चाहिए।
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श्लोक.28
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना॥
हिंदी अनुवाद:
हे भारत! सभी जीव अनादि में अव्यक्त होते हैं, बीच में प्रकट होते हैं और अंत में पुनः अव्यक्त हो जाते हैं। फिर किस बात का शोक?
सरल व्याख्या:
जीवन का आरंभ और अंत अदृश्य रहता है, केवल बीच का भाग दृश्य होता है। यह एक अस्थायी पड़ाव है।
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श्लोक.29
आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेनम्
आश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः।
आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति
श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्॥
हिंदी अनुवाद:
कोई आत्मा को आश्चर्य की तरह देखता है, कोई आश्चर्य की तरह बताता है, कोई आश्चर्य की तरह सुनता है, फिर भी कोई-कोई ही इसे समझ पाता है।
सरल व्याख्या:
आत्मा को जानना अत्यंत दुर्लभ है। अनेक लोग सुनते हैं, पर कम ही लोग आत्मा के वास्तविक स्वरूप को अनुभव करते हैं।
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श्लोक.30
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि॥
हिंदी अनुवाद:
हे भारत! सबके शरीर में यह आत्मा सदा अवध्य (न मारने योग्य) है। इसलिए किसी भी प्राणी के लिए शोक मत कर।
सरल व्याख्या:
हर जीव में आत्मा अमर है, उसका कोई वध नहीं कर सकता। इसलिए मृत्यु पर शोक अज्ञानता है।
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