श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 8 – अक्षर ब्रह्म योग | सभी 28 श्लोक सहित

 श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 8 – अक्षर ब्रह्म योग | सभी 28 श्लोक सहित

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 8 – अक्षर ब्रह्म योग | सभी 28 श्लोक सहित


श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 8 : अक्षर ब्रह्म योग

श्लोक 1 से 28 तक | हिंदी अनुवाद और सरल व्याख्या

परिचय: 

श्रीमद्भगवद्गीता का आठवाँ अध्याय "अक्षर ब्रह्म योग" मृत्यु के रहस्य, आत्मा की अमरता और परम धाम की प्राप्ति को उजागर करता है।

यहाँ श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि भक्ति से ब्रह्म को कैसे पाया जा सकता है।

अध्याय में कुल 28 श्लोक हैं, जिनका हिंदी अनुवाद और सरल व्याख्या नीचे दी गई है।

इस ज्ञान से मृत्यु भी डरावनी नहीं रहती — बल्कि मोक्ष का द्वार बन जाती है।

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श्लोक 1
अर्जुन उवाच —

किं तद् ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम |

अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किं उच्यते ॥

हिंदी अनुवाद:

अर्जुन ने पूछा — हे पुरुषोत्तम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत और अधिदैव क्या हैं?

सरल व्याख्या:

अर्जुन भगवान से गहराई से जानना चाहता है कि 'ब्रह्म', 'आध्यात्म', 'कर्म', 'अधिभूत' और 'अधिदैव' जैसे गूढ़ शब्दों का सही अर्थ क्या है।

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श्लोक 2

अधियज्ञ: कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन |

प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ॥

हिंदी अनुवाद:

हे मधुसूदन! अधियज्ञ क्या है और वह इस शरीर में कैसे है? और मृत्यु के समय आपको कैसे जाना जाता है?

सरल व्याख्या:

अर्जुन यह भी जानना चाहता है कि 'अधियज्ञ' क्या है और मृत्यु के समय मन को स्थिर रखने वाले व्यक्ति भगवान को कैसे प्राप्त करते हैं।

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श्लोक 3
श्रीभगवान उवाच —

अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते |

भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः ॥

हिंदी अनुवाद:

भगवान बोले — अविनाशी परम तत्व को 'ब्रह्म' कहते हैं। जीवात्मा का अपना स्वरूप 'अध्यात्म' है। जो सृष्टि को उत्पन्न करता है, वह 'कर्म' कहलाता है।

सरल व्याख्या:

यहां भगवान बताते हैं कि ब्रह्म (सत्य, परम तत्व), अध्यात्म (आत्मा का स्वरूप), और कर्म (सृष्टि की क्रिया) क्या है।

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श्लोक 4

अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्चाधिदैवतम् |

अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ॥

हिंदी अनुवाद:

सब नाशवान पदार्थ 'अधिभूत' हैं, और आत्मा 'अधिदैव' है। हे शरीरधारियों में श्रेष्ठ! मैं ही इस शरीर में 'अधियज्ञ' हूँ।

सरल व्याख्या:

भगवान कहते हैं – सब भौतिक वस्तुएं अधिभूत हैं, देवताओं का स्वामी आत्मा अधिदैव है, और जो यज्ञ का केंद्र है (स्वयं भगवान), वही अधियज्ञ है।

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श्लोक 5

अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् |

यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥

हिंदी अनुवाद:

जो व्यक्ति मृत्यु के समय मेरा ही स्मरण करता हुआ शरीर त्यागता है, वह मुझे ही प्राप्त होता है – इसमें कोई संदेह नहीं है।

सरल व्याख्या:

भगवान स्पष्ट करते हैं – अंतिम समय में जो मुझे याद करता है, वह मोक्ष को प्राप्त करता है।

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श्लोक 6

यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् |

तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ॥

हिंदी अनुवाद:

हे अर्जुन! जो व्यक्ति मृत्यु के समय जिस भाव को स्मरण करता है, वह उसी भाव को प्राप्त होता है।

सरल व्याख्या:

अंतिम समय की भावना बहुत महत्वपूर्ण है – जो स्मरण करते हो, वही भवितव्य बनता है।

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श्लोक 7

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च |

मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम् ॥

हिंदी अनुवाद:

इसलिए तू हर समय मेरा स्मरण कर और युद्ध कर। जब तेरा मन और बुद्धि मुझमें अर्पित होगी, तब तू निश्चित रूप से मुझे प्राप्त करेगा।

सरल व्याख्या:

भगवान अर्जुन को निर्देश देते हैं – कर्म करते हुए भी मन मुझमें लगाओ, यही भक्ति और मोक्ष का रास्ता है।

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श्लोक 8

अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना |

परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन् ॥

हिंदी अनुवाद:

जो व्यक्ति अभ्यास योग द्वारा निरंतर मन को मुझमें लगाकर मेरे दिव्य स्वरूप का चिंतन करता है, वह परम पुरुष को प्राप्त करता है।

सरल व्याख्या:

निरंतर अभ्यास और एकाग्रता से भगवान का ध्यान करने वाला व्यक्ति अंततः परम धाम को प्राप्त करता है।

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श्लोक 9

कविं पुराणमनुशासितारमणोरणीयांसमणुस्मरेद्यः |

सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूपमादित्यवर्णं तमसः परस्तात् ॥

हिंदी अनुवाद:

जो व्यक्ति उस परमेश्वर का स्मरण करता है – जो सर्वज्ञ, सनातन, सबका शासक, सूक्ष्म से भी सूक्ष्म, सबका आधार, अद्भुत रूप वाला, सूर्य के समान तेजस्वी और अंधकार से परे है।

सरल व्याख्या:

भगवान का स्वरूप अत्यंत दिव्य है – जो सबके भीतर और बाहर हैं। ऐसे भगवान का स्मरण ही मुक्ति का मार्ग है।

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श्लोक 10

प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव |

भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥

हिंदी अनुवाद:

जो व्यक्ति मृत्यु के समय अडोल मन से, भक्ति और योग की शक्ति से, प्राण को भ्रूमध्य में स्थिर करके परम पुरुष का ध्यान करता है – वह परम धाम को प्राप्त करता है।

सरल व्याख्या:

मृत्यु के समय जिसकी भक्ति सच्ची है और मन एकाग्र है, वह योगी प्रभु को प्राप्त करता है। यही मोक्ष है।

श्लोक 11

यदक्षरं वेदविदो वदन्ति...

विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः |

यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति...

तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये ॥

हिंदी अनुवाद:

जिस अविनाशी पद को वेदज्ञ लोग ब्रह्म कहते हैं, जिसे प्राप्त करने के लिए विरक्त मुनि प्रयत्न करते हैं और जिस हेतु ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं – उस परम पद का संक्षेप में वर्णन मैं करता हूँ।

सरल व्याख्या:

भगवान उस परम लक्ष्य की व्याख्या कर रहे हैं, जिसे जानने के लिए ऋषि-मुनि तप और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।

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श्लोक 12

सर्वद्वाराणि संयम्य...

मनः हृदि निरुद्ध्य च |

मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम् ॥

हिंदी अनुवाद:

जब कोई साधक सब इंद्रियों को नियंत्रित करके मन को हृदय में और प्राण को मस्तक में स्थिर करता है, तब वह योगधारणा को प्राप्त होता है।

सरल व्याख्या:

प्रभु कहते हैं कि मृत्यु के समय मन और प्राण को एक विशेष स्थिति में स्थापित करना योग की उच्च अवस्था है।

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श्लोक 13

ओं इत्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् |

यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ॥

हिंदी अनुवाद:

जो व्यक्ति "ॐ" का उच्चारण करते हुए और मेरा स्मरण करते हुए शरीर त्यागता है, वह परम गति को प्राप्त करता है।

सरल व्याख्या:

"ॐ" एक दिव्य ध्वनि है, जो ब्रह्म का प्रतीक है। अंतिम समय में इसका उच्चारण और भगवान का स्मरण मोक्ष दिलाता है।

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श्लोक 14

अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः |

तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः ॥

हिंदी अनुवाद:

जो व्यक्ति निरंतर और एकनिष्ठ भाव से मेरा स्मरण करता है, उसके लिए मैं सहज रूप से उपलब्ध हो जाता हूँ।

सरल व्याख्या:

ईश्वर की प्राप्ति कठिन नहीं है, यदि मन सदा उन्हीं में लगा रहे। निष्ठावान भक्त को भगवान सहज मिलते हैं।

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श्लोक 15

मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम् |

नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः ॥

हिंदी अनुवाद:

जो महात्मा मुझे प्राप्त कर लेते हैं, वे फिर उस दुःखमय और नश्वर संसार में जन्म नहीं लेते, क्योंकि वे परम सिद्धि को प्राप्त कर लेते हैं।

सरल व्याख्या:

भगवान का साक्षात्कार करके जन्म-मरण का चक्र टूट जाता है, और आत्मा स्थायी सुख में प्रवेश करती है।

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श्लोक 16

आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन |

मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥

हिंदी अनुवाद:

हे अर्जुन! ब्रह्मलोक तक के सभी लोक पुनर्जन्म के अधीन हैं, परंतु जो मुझे प्राप्त करता है, वह पुनः जन्म नहीं लेता।

सरल व्याख्या:

स्वर्ग या ब्रह्मलोक भी स्थायी नहीं हैं, केवल भगवान को प्राप्त करने से ही मोक्ष मिलता है।

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श्लोक 17

सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदुः |

रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः ॥

हिंदी अनुवाद:

जो ज्ञानी ब्रह्मा के एक दिन को हजार युगों के बराबर और रात को भी इतने ही युगों का मानते हैं, वे वास्तव में दिन-रात्रि का तत्त्व जानते हैं।

सरल व्याख्या:

भगवान ब्रह्मा का एक दिन लाखों वर्षों के बराबर होता है। सृष्टि और प्रलय का यह चक्र अनंत है।

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श्लोक 18

अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे |

रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके ॥

हिंदी अनुवाद:

ब्रह्मा के दिन में सभी प्राणी प्रकट होते हैं और रात्रि आने पर सब अव्यक्त में लीन हो जाते हैं।

सरल व्याख्या:

सृष्टि का क्रमिक निर्माण और लय (प्रलय) समयानुसार चलता रहता है – यह प्रकृति की चक्रीय प्रक्रिया है।

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श्लोक 19

भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते |

रात्र्यागमेऽवशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे ॥

हिंदी अनुवाद:

हे पार्थ! वही जीवों का समूह बार-बार जन्म लेता है और रात्रि में लीन हो जाता है, दिन आने पर पुनः उत्पन्न होता है।

सरल व्याख्या:

जीवात्मा जन्म-मरण के चक्र में फंसा हुआ है – यह तब तक चलता है जब तक मोक्ष न हो।

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श्लोक 20

परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः |

यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ॥

हिंदी अनुवाद:

उस अव्यक्त (प्रकृति) से परे एक और सनातन अव्यक्त तत्व है, जो सभी प्राणियों के नाश हो जाने पर भी नष्ट नहीं होता।

सरल व्याख्या:

भौतिक संसार नश्वर है, परंतु आत्मा और परमात्मा शाश्वत हैं। यह परम तत्त्व न कभी पैदा होता है, न नष्ट होता है।

श्लोक 21

अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम् |

यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥

हिंदी अनुवाद:

जो अव्यक्त और अक्षर कहा गया है, उसे ही परम गति कहते हैं। उसे प्राप्त कर लेने के बाद जीव वापस नहीं लौटता। वही मेरा परम धाम है।

सरल व्याख्या:

भगवान का निवास स्थान, जहाँ जाकर जीव का पुनर्जन्म नहीं होता – वही मोक्ष है और वही परम धाम।

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श्लोक 22

पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया |

यस्यान्तःस्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ॥

हिंदी अनुवाद:

हे पार्थ! वह परम पुरुष केवल अनन्य भक्ति के द्वारा ही प्राप्त होता है, जिनके अंदर सभी प्राणी स्थित हैं और जिन्होंने सम्पूर्ण जगत को व्याप्त कर रखा है।

सरल व्याख्या:

भगवान को केवल सच्ची और एकनिष्ठ भक्ति से पाया जा सकता है – वे ही सबके भीतर हैं और सब कुछ उन्हीं से व्यापृत है।

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श्लोक 23

यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिनः |

प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ॥

हिंदी अनुवाद:

हे भरतश्रेष्ठ! अब मैं वह समय बताता हूँ, जब योगी शरीर त्यागने पर या तो वापस नहीं आते (मोक्ष) या फिर लौट आते हैं (पुनर्जन्म)।

सरल व्याख्या:

भगवान अब उन कालों का वर्णन करते हैं, जिनसे यह ज्ञात होता है कि कोई आत्मा मोक्ष को प्राप्त करेगी या पुनः जन्म लेगी।

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श्लोक 24

अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् |

तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ॥

हिंदी अनुवाद:

अग्नि, प्रकाश, दिन के समय, शुक्ल पक्ष और उत्तरायण में शरीर त्यागने वाले ब्रह्मज्ञ योगी ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।

सरल व्याख्या:

ये शुभ काल हैं। जो योगी इन कालों में मृत्यु को प्राप्त करते हैं, वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

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श्लोक 25

धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासा दक्षिणायनम् |

तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते ॥

हिंदी अनुवाद:

धूम (धुंधला समय), रात्रि, कृष्ण पक्ष और दक्षिणायन में मरने वाले योगी चंद्रलोक को प्राप्त करते हैं, परंतु वे पुनः जन्म लेते हैं।

सरल व्याख्या:

ये काल पुनर्जन्म के कारण बनते हैं। इन समयों में मृत्यु होने पर मोक्ष नहीं मिलता।

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श्लोक 26

शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते |

एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुनः ॥

हिंदी अनुवाद:

ये दो प्रकार की गतिक्रमानुसार मार्ग (शुक्ल और कृष्ण) सदा से माने गए हैं – एक से मोक्ष प्राप्त होता है और दूसरी से पुनर्जन्म।

सरल व्याख्या:

शास्त्रों में दो मार्ग बताए गए हैं – एक मोक्ष का (प्रकाश मार्ग), और दूसरा पुनर्जन्म का (अंधकार मार्ग)।

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श्लोक 27

नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन |

तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन ॥

हिंदी अनुवाद:

हे पार्थ! इन दोनों मार्गों को जानकर कोई भी योगी मोह में नहीं पड़ता। इसलिए तू हर समय योग में स्थित रह।

सरल व्याख्या:

जो इन रहस्यों को जानता है, वह भटकता नहीं है। इसलिए हर समय भगवान का स्मरण और भक्ति करते रहो।

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श्लोक 28

वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् |

अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् ॥

हिंदी अनुवाद:

जो पुण्य फल वेद, यज्ञ, तप और दान से प्राप्त होते हैं, उन्हें यह ज्ञानी योगी पार कर जाता है और परम पद को प्राप्त करता है।

सरल व्याख्या:

सभी धार्मिक कर्मों से बढ़कर है – ज्ञान और भक्ति से परमात्मा को प्राप्त करना। ऐसा योगी अंततः परम धाम को प्राप्त करता है।

समापन:

इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने आत्मा, ब्रह्म, मोक्ष, मृत्यु के समय की स्थितियाँ, शुभ और अशुभ काल, और भक्ति के द्वारा भगवान को प्राप्त करने के मार्ग को विस्तार से समझाया है।

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